प्रेम सौहार्द और अपनत्व की त्रिवेणी जिस देस में बहती है। है वो मेरे बाबुल का अंगना, ये मेरी लेखनी कहती है।। भाई और बहन है पुष्प एक ही चमन के, महक दोनो में एक सी रहती है।। स्नेह प्रेमचंद
काश कोई हाट ऐसा भी होता, जहां से किसी खोए नाते को वापस ला पाते। जानते हैं ये सच है जाने वाले कभी वापस फिर लौट नहीं आते।। तेरी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा सी। जीवन का सबसे अनमोल अहसास रही सदा तूं मां जाई! तन में,जल में सच हो जैसे हंसा सी।।