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Showing posts from 2025

किसी भी राह पर,किसी भी मोड पर

यादें याद रह जाती हैं

मां मां मामा आया है देख नुक्कड़ पर मामा को केले संग,हम चिल्ला कर दौड़ते हुए आते थे मां के पास थकी मां खिल जाती थी कमल सी वह शाम बन जाती थी अति खास वे केले हमें लगते थे हमें अति स्वादिष्ट तत्क्षण ही पॉलीथिन चला जाता था कूड़े दान के पास भाई भाभी का मां फोटो अक्सर पोंछ कर कवर्नेस पर सजाती थी और हमारे बचपन की मधुर स्मृतियों का  स्थाई सा हिस्सा बन जाती थी मां देख मामा को कितना मंद मंद मुस्कुराती थी फिर चूल्हे पर आलू गोभी और करारी सी रोटी बनाती थी हर शादी में पहन सूट सपारी मामा की शख्सियत और मनोहर बन जाती थी मेरी मां देख मेरे मामा को बलिहारी सी हो जाती थी कितना मौन सा स्नेह था भाई बहन का,वह खामोशी अक्सर शोर मचाती थी आज भी याद आता है मुझे मा भात न्योतने बड़े शौक से जाती थी देख पाटडे पर खड़ा अपने भाई को मां की आँखें नम हो जाती थी उपहार भले हो सामान्य होते थे पर स्नेह डोर अपनी मजबूती दिखाती थी मामा के आने से मेरी मां सच में पूर्ण हो जाती थी

चिंगारी(( विचार स्नेह प्रेमचंद))

सबके भीतर छिपी हुई है एक चिनगारी इसे राख बनाते हैं या शोला सबकी अपनी अपनी तैयारी आलस्य तो है दीमक की तरह कर्मों से ही सदा से बाजी मारी कोई निखरता है संघर्षों से कोई पूर्णतया बिखर जाता है कोई सामना करता है  चुनौतियों का डट के, कोई भीगी बिल्ली बन जाता है परिवेश परवरिश सबकी अलग हैं कोई उद्दंड कोई आज्ञाकारी  सबके भीतर छिपी हुई है एक छोटी सी चिंगारी इसे राख बनाएं या हम शोला सबकी अपनी अपनी तैयारी *जो चुनते हैं वही बुनते हैं* हमारे सही चयन ने सदा हमारी जिंदगी संवारी कौरवों ने चुना युद्ध और ठुकराया शांति प्रस्ताव माधव का महाभारत की भड़क गई थी चिंगारी सबके भीतर एक हनुमान छिपा है पर राम से मुलाकात होगी उसी हनुमान की, जिसे अपनी शक्तियों को जगाना आता होगा जिसे घणी मावस में पूनम का चांद खिलाना आता होगा जिसे अपने कर्मों से भाग्य बदलना आता होगा बहुत सो लिए अब तो जागने की  बंधु आ गई है बारी सबके भीतर छिपी हुई है एक छोटी सी चिनगारी राख बनाते हैं या शोला सबकी अपनी अपनी तैयारी अथाह असीमित संभावनाओं को खंगाल बेहतरीन विकल्पों का चयन, आत्म मंथन के बाद आत्म सुधार की राह दिखाता है किसी को जल्दी ...

औसत से खास

वह बचपन कितना प्यारा था

अपने

वजह

आता है आनन्द मुझे

स्वभाव

चित को जो शांत कर दे

वही मित्र हैं

बीमा कवच

वो वापस वतन में आई है

ट्विंकल ट्विंकल

यही मित्र है

मेरे पास चली आना(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जीवन के सफर में चलते चलते जब थकने लगें कदम तेरे *तब मेरे पास चली आना*  पीहर की हूक उठे जब चित में और दिल मां का संग लगे चाहने *तब आने में तनिक न देर लगाना* तपते मरुधर में शीतल सी छाया बनने की रहेगी कोशिश मेरी, *आता है स्नेह को स्नेह आप्लावित चित से स्नेह निभाना* तेरा चेहरा पढ़ लेती हैं आँखें मेरी देख कभी ना मुझ से कुछ भी छिपाना भले ही मिली हो 5 बरस के बाद मुझे *आता है याद मुझे गुजरा ज़माना* हर धूप छांव में सदा संग खड़ी थी तूं मेरे,देख मेरी लाडो आगे भी साथ निभाना जग की इस भीड़ में यूं हीं नहीं लगते कुछ लोग इतने अपने, होता होगा कोई नाता पिछले जन्म का सुहाना मुलाकात भले ही कम हों, पर जब भी हो उसमें खास बात हो हो जाए मन उसका दीवाना जीवन के सफर में चलते चलते जब थकने लगे कदम तेरे *तब मेरे पास चली आना* दूर रह कर भी बहुत पास है तूं दिल के दिल मेरा तेरा दीवाना बेटी रूप में दिखती है सदा मुझे, हर मोड पर खुली किताब सी खुल जाना खून का भले ही नहीं है नाता तुझसे पर दिल का है  *मैं जानूं, तूं जाने भले ही जाने ना ये सारा जमाना* एक नहीं दो बेटियां हैं मेरी *हो तेरे जीवन का सफर सुहान...

मात्र एक नाता नहीं होता भाई

मुबारक हो तुमको जन्मदिन तुम्हारा

मुबारक हो तुमको जन्मदिन तुम्हारा मिले प्यार तुमको सदा ही  हमारा स्नेह की स्नेह भरी दुआएं  लाडले कर लेना स्वीकार एक यही चाह रहती है दिल में मेरे हों सदा तुझे खुशियों के दीदार मेरे जीवन की हो तुम ज्योति और जीने का सुंदर सहारा मुबारक हो तुम को जन्मदिन तुम्हारा मेरे दिल ने आज स्नेह भरे दिल से पुकारा जीवन के हर चक्रव्यूह में प्रवेश संग निकलना भी आए तुझ को, हो हर अनुभव ने तुझे बखूबी निखारा अपने भीतर छिपे हनुमान को पहचान कर,करना हर संभव कोशिश, कर्मों से करना ना कभी तू किनारा मुबारक हो तुमको जन्मदिन तुम्हारा दिनकर से ले लेना तेज तूं इंदु से शीतलता ले लेना प्रकृति से सीखना तूं अनुशासन पहाड़ों से अडिगता ले लेना जुगुनू से चमकना सीखना तूं नदियों का प्रवाह भी ले लेना सागर से सीखना गहराई अम्बर से ऊंचाई ले लेना धरा से सीखना तूं संयम कोयल से मधुर वाणी ले लेना अपनी जिंदगी की किताब को लिखना अपने ही नजरिए से कभी किसी हाल में किसी को कोई कष्ट न तूं देना दिल पर दस्तक,जेहन में बसेरा,चित में  तेरे लाडले पक्के निशान सत्कर्म ही हों परिचय पत्र तेरा, हों सत्कर्म ही तेरी पहचान कर्म से रावण कर से ही ...

कर्मों से ही बनते रावण,कर्मों से ही बनते राम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कर्मों से ही बनते रावण कर्मों से ही बनते राम किसको जगाते किसको सुलाते होते सबके अपने अपने काम आज अभी इसी पल से जप लो नाम राम का,जाने कब आ जाए जीवन की शाम सौ बात की एक बात है  राम ही तीर्थ राम ही धाम लंका से मन को अवध बनाने तक क्यों करते हो विश्राम महाभारत से इस चित को रामायण बना दो निष्काम बापू के ये बंदर तीन यही तो हमें सिखाते हैं बुरा न बोलो,बुरा न कहो,बुरा न सुमो पर हम इसे हल्के में ले जाते हैं हल्के में लेना इसको पड जाता है   अक्सर भारी  बहुत सो लिए अब तो जाग लें आई समझने की बारी अच्छी सोच सदा लाती है जीवन में  सु परिणाम कर्मों से ही बनते रावण कर्मों से ही बनते राम

हमारा परिचय पत्र

Poem on karma

जय श्री राम

यही होता है परिवार

हमारा चयन( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

Poem on education(( thiought by Sneh Premchand)

Poem on Shri Ram (( prayer by Sneh Premchand))

जाने क्यों

Men s day

बचपन

*भरोसे का धरातल,सपनों का आसमान* जहां सारे का सारा हमरा था वह बचपन कितना प्यारा था जहां लड़ते झगड़ते फिर एक हो जाते वह सच में कितना न्यारा था जब कुछ भी उलझन होती थी होती मां की गोदी थी पिता का सिर पर साया था ना लगता कोई पराया था औपचारिकता की सबने अब चिन ली बड़ी बड़ी दीवारें हैं पार देखना भी चाहें गर हम बेगानी बेगानी सी मीनारें हैं तब तेरा मेरा न होता था  सब का सब कुछ होता था जहां हमारा सारे का सारा था वह बचपन कितना प्यारा था मां इंतजार करती थी वह सबसे बड़ा सहारा था बाबुल के सहज से आंगन में चिड़िया का बसेरा बड़ा दुलारा था नहीं बोलता था जब कोई अपना चित में हलचल हो जाती थी खामोशी करने लग जाती थी कोलाहल भीड़ में तन्हाई तरन्नुम बजाती थी किसी न किसी छोटे से बहाने से मिलन की आवाज आ जाती थी अहम बड़े छोटे होते थे सहजता लंबी पींग बढ़ाती थी आज बैठ में लगी सोचने बचपन अपना कितना निखारा था वह बचपन कितना प्यारा था अपनत्व के तरकश से सब तीर प्रेम के चला ते थे रूठ जाता था गर कोई झट से उसे मनाते थे नहीं ममता था गैर कोई प्रलोभन से उसे ललचाते थे लेकिन जीवन की मुख्य धारा में कैसे न कैसे उसे ले आते थे दुर...

आफताब

मित्र

मैं सच में न भूलूंगी

जब भी आता है यह माह नवंबर यादों का सैलाब आ बह जाता है भेजा था जो 2020 में तूने जो केक मुझे,बहुत कुछ फिर याद आता है

इससे प्यारी

गुरु और शिष्य

गुरु की गोद में ही पलते हैं प्रलय और निर्माण गुरु राम कृष्ण परमहंस थे तो शिष्य विवेकानंद बने अति महान अंधकार दूर कर जीवन से उजियारा लाने का गुरु ही करता आह्वान गुरु चाणक्य ने ही तो चंद्रगुप्त मौर्य के चरित्र का किया था निर्माण शिष्य तो होता है कच्ची मारी का डेला  गुरु ही पका पका कर लाता सदा सु परिणाम गुरु प्लेटो थे तो ही अरस्तू बना महान मैं नहीं तूं नहीं सत्य जाने सारा जहान गुरु अमोल मजूमदार थे तो महिला हाकी टीम के संगठन का हुआ काम टीम वर्क,साझे प्रयास,स्टेटरजी,नियमित अभ्यास का गुरु ही अंकुरित करता है बीज निष्काम हर संभावित सुधार और निखार की ओर गुरु ही करता है अग्रसर यही गुरु का शिष्य को इनाम  2014 में बीसीसीआई ने इन्हें  भारतीय महिला टीम की सौंपी कमान अगले 11 सालों में दिखा दिया उन्होंने बन की रियल कबीर खान जुनून,धैर्य और मेहनत से  भारत को  महिला क्रिकेट का चैंपियन बना डाला संकल्प को मिला दिया सिद्धि से मन में कुछ खास करने का जज्बा था पाला मैत्रेई सावित्री बाई फुले का  भी शीर्ष पर आता है नाम

Poem on bharat ki गौरव

*रच दिया बेटियों ने इतिहास* धरा पर रह कर सच में छू लिया आकाश तोड़ बेड़ियां, बढ़ी बेटियां,सच में रच दिया इतिहास क्या कुछ नहीं कर सकते प्रयास??? आम को बना सकते हैं अति अति खास अथक मेहनत से पल पल होता है विकास युगों से बेड़ियों में जकड़ी मानसिकता को दे दिया खुला आकाश *सपने वे हैं जो हमें सोने नहीं देते* अब्दुल कलाम के इस कथन को कर सार्थक, किया चहुं ओर उजास *बोझ नहीं शक्ति,संवेदना,अहसास हैं बेटियां* जो ठान लिया,पूरा करने का करती भरसक प्रयास वर्ल्ड कप ही नहीं जीती हैं बेटियां,जीती हैं हिम्मत,हौंसला,आत्मविश्वास *संकल्प को मिला दिया सिद्धि से* वांछित परिणामों का कर दिया शिलान्यास बुलंद हौंसला,मजबूत इरादे ला गया जीवन में प्रकाश जाने किन लम्हों में ठान लिया इन बेटियों ने चूल्हा चौक्का नहीं चौक्के छक्के लगाएंगे सदियों पुरानी मानसिकता की होलिका जलाएंगे बेलन नहीं बल्ला घुमाएंगे पूरे विश्व में विजय का डंका बजाएंगे कोई बाधा न बन सकेगी बाधक सफर को मंजिल से मिलाएंगे घर में चाय का कप नहीं वर्ल्ड कप लाएंगे बाउंडेशन तोड़ नई फाउंडेशन रखेंगे और दुनिया को दिखाएंगे उनकी इस सोच से घने तमस में दिखने लगा प्रकाश...

लम्हा लम्हा

एक परी

उम्र छोटी पर का बड़े(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*उम्र छोटी पर कर्म बड़े* यही परिचय है महिला क्रिकेट टीम का यही उनकी बनी पहचान साधारण पृष्ठभूमि पर असाधारण उपलब्धि बता हुई प्रतिभा नहीं मोहताज धन दौलत के, सच्चे प्रयासों से व्यक्ति बन सकता है धनवान कहां नहीं हैं बेटियां कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं अब इनसे हर ओर किया इन्होंने प्रस्थान बखूबी जानती हैं अपनी हर समस्या का समाधान कोसा न अपने परिवेश और परिस्थितियों को, दुविधा में सुविधा खोजने का जज्बा महान कर्म बदल सकता है भाग्य आज जान चुका है सारा जहान न रुकी न थकी ये कर्तव्य कर्मों का था इन्हें बखूबी भान लगन सच्ची,प्रतिबद्धता पक्की मेहनत कड़ी यही संकल्प को सिद्धि से मिलाने का उनका विज्ञान बढ़ी बेटियां,तोड़ी बेड़ियां बदली सोच,बदला जहांन

बिन मुहुर्त राखी भाई दूज आ जाते हैं

जिस दिन भी किसी मोड़ पर जब भाई बहन मिल जाते हैं राखी और भाई दूज बिन मुहुर्त के आ जाते हैं जाने कितने ही पुराने किस्से पल भर में तरोताजा हो जाते हैं जिंदगी का परिचय जब हो रहा होता है अनुभूतियों  से ये तो तब से साथ निभाते हैं सच में रेगिस्तान हरे हो जाते हैं बिन माचिस ही चिराग रोशन हो जाते हैं जब भी ये भाई बहन किसी भी मोड पर मिल जाते हैं हौले हौले संग समय के अक्स एक दूजे में मात पिता के नजर आते है  इनके आने से हर धुंधले मंजर सच में साफ हो जाते हैं

परिणय की इस मंगल बेला पर

आ कर वही जलाए रावण

मां की पाती

जिले हरियाणा के

Poem on Anju kumar

हरियाणा का स्थापना दिवस