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तमस से आलोक की ओर poem by snehpremchand

तमस से आलोक की ओर
अधर्म से धर्म की ओर
असत्य से सत्य की ओर
रजनी से भोर की ओर
अवसाद से उल्लास की ओर
संशय से विश्वास की ओर
ख्वाब से हकीकत की ओर
बेचैनी से सहजता की ओर
जड़ से चेतन की ओर
भटकाव से मन्ज़िल की ओर
विषाद से जिजीविषा की ओर
अकर्मण्यता से कर्मठता की ओर
चिंता से चितन की ओर
प्रतिशोध से क्षमा की ओर
अज्ञान से ज्ञान की ओर
वेदना से मरहम की ओर
अहम से वयम की ओर
सवः से सर्वे की ओर
स्वार्थ से परमार्थ की ओर
संचय से अपरिग्रह की ओर
हिंसा से अहिंसा की ओर
भौतिकता से प्रकृति की ओर
नास्तिकता से आस्तिकता की ओर
घृणा से प्रेम की ओर
निष्ठुरता से करुणा की ओर
विषमता से समता की ओर
दुर्भावना से सद्भावना की ओर
पाप से पुण्य की ओर
मोह से त्याग की ओर
पराजय से विजय की ओर
ह्रास से विकास की ओर
हठधर्मिता से विनम्रता की ओर
क्रंदन से वंदन की ओर
बंजर से उर्वर की ओर
साम्प्रदायिकता से धर्म निरपेक्षता की ओर
निरक्षरता से साक्षरता की ओर
अराजकता से शांति सौहार्द की ओर
हे माधव! आज आप को ही तो लेकर जाना है।
आज जीवन के कुरुक्षेत्र में विचलित हो रहे हैं
जाने कितने ही पार्थ,
दे,फिर से गीता सा ज्ञान उन्हें,
भाव सागर से पार लगाना है।
जलाया है जो दीया उम्मीद का,
ये जग रोशन करवाना है।।
ऐसी अखण्ड ज्योत जले विश्वास की,
अखंड विश्व को धीर धराना है।।
            स्नेहप्रेमचंद

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

अकाल मृत्यु हरनम सर्व व्याधि विनाश नम Thought on धनतेरस by Sneh premchand

"अकाल मृत्यु हरणम सर्व व्याधि विनाशनम" अकाल मृत्यु न हो, सब रोग मिटें, इसी भाव से ओतप्रोत है धनतेरस का पावन त्यौहार। आज धनतेरस है,धन्वंतरि त्रयोदशी, धन्वंतरि जयंती, करे आरोग्य मानवता का श्रृंगार।। आज ही के दिन सागर मंथन से प्रकट हुए थे धन्वंतरि भगवान। आयुर्वेद के जनक हैं जो,कम हैं, करें, जितने भी गुणगान।। प्राचीन और पौराणिक डॉक्टर्स दिवस है आज, धनतेरस के महत्व को नहीं सकता कोई भी नकार। "अकाल मृत्यु हरनम, सर्व व्याधि विनाशनम" इसी भाव से ओत प्रोत है धनतेरस का पावन त्यौहार।। करे दीपदान जो आज के दिन,नहीं होती अकाल मृत्यु,होती दूर हर व्याधि रोग और हर बीमारी के आसार।। आज धनतेरस है,धन्वंतरि त्रयोदशी,धन्वंतरि जयंती,करे आरोग्य मानवता का श्रृंगार।।।             स्नेह प्रेमचंद