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Showing posts from August, 2025

सुरक्षा और विश्वाश(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

भा---रतीय जीवन बीमा निगम का दूसरा नाम है सुरक्षा और विश्वाश आज जन्मदिन 69 वा इसका, लम्हा लम्हा हर मोड पर किया विकास र---खा है जिसने स्नेह और सौहार्द सभी से,तभी निगम है अति खास हों हर पॉकेट में विविध पॉलिसी करते अभिकर्ता पूरा प्रयास *बीमित भारत सुरक्षित भारत*  हो सबको इस सत्य का आभास ती---र्थ भी कर्म है,धाम भी कर्म है, गीता ज्ञान की इसी सोच से हुआ है नित नित इसमें विकास सुधार और निखार की हर संभावना को रखा है पास य---हाँ, वहाँ सर्वत्र पसारे पाँव निगम ने, अपने अस्तित्व का इसे आभास बखूबी जानता भी है मानता भी है निगम, क्या कुछ नहीं कर सकते प्रयास जी- ने का साथ भी है जीने के बाद भी है, भरोसे का धरातल,सपनों का आकाश व---नचित न रहे कोई भी उत्पादों से, इसके,यथासंभव किया हर संभव प्रयास *स्वाभिमान बना रहे सबका* जनकल्याण है मूल में इसके,बनाता है इसे जो खास न---भ सी छू ली हैं भले ही ऊंचाईयां, आता है धरा के भी रहना पास हर वर्ग का रखा ध्यान है जैसे घने अंधेरे में उजला प्रकाश बी---च भंवर में जब कोई चला जाता है, छोड़ कर, होती है निगम से फिर सच्ची आस विश्वाश की नाव में सुरक्षा की पतवार ले समृद्धि के म...

best poem on sister Anju Kumar# Amazing personality# best human being (( thought by sneh premchand))

वह क्या थी,कब थी,कैसी थी,क्यों थी है यह बहुत एक लंबी कहानी खास नहीं बहुत खास होती है कुछ कुछ लोगों की जिंदगानी उम्र छोटी पर कर्म बड़े जिक्र जेहन में छिपी हैं जाने कितनी ही निशानी

कटु सत्य

Best poem on daughter # बेटी बचाओ# बेटी से प्यारा कोई नहीं(( thought by sneh premchand))

किसी भी समस्या के मूल में जब तक गहरे तुम नहीं जाओगे समाधान के उजले मोती कहो कैसे निकाल कर लाओगे जब तक ना करोगे बेटों को मर्यादित कहो कैसे बेटी बचाओगे?????? बचेगी बेटी तभी तो पढ़ेगी बेटी इस सत्य से कब तक स्वयं को अवगत नहीं करवाओगे???? पुतला नहीं,जला दो हर रावण को, कब तक मोमबत्ती जलाओगे???? *अब माधव नहीं आते*  पर दुशासन को हर गली,कूचे,नुक्कड़ पर पाओगे *अब स्वयं बनो माधव तुम सारे* रक्षा कवच तुम्हीं अब लाओगे नारी अस्मिता की रक्षा हेतु हो बेहतर छोड़ बांसुरी अब सुदर्शन चक्र चलाओगे  उठो द्रोपदी! बनो सशक्त तुम जग वालों कब तक तमाशा देखते जाओगे?? क्यों धमनियों में नहीं खौलता रक्त तुम्हारा, बेटियां तो होती हैं सांझी,कब सत्य समझ ये पाओगे जब तक ना करोगे बेटों को मर्यादित कहो बेटियां कैसे बचाओगे???? बचेगी बेटी तो पढ़ेगी बेटी कब निर्भयता का डंका पूरे वतन में बजाओगे??? चांद पर पहुंचे भी तो क्या पहुंचे गर धरा पर ही बेटियों को सुरक्षित नहीं रख पाओगे??! शिक्षा भाल पर तिलक संस्कारों का जब तलक नहीं लगाओगे?? सोच,कर्म,परिणाम की त्रिवेणी कहो ना कैसे बहाओगे??? लो संकल्प आज अभी से सारे *हो हर बाला निर्...

इतने चश्मे

सजल नयन

उनियारा

चित्रकार

सबसे अच्छे मात पिता

सपनों ने

सफलता

एनर्जी

नयन सजल

फिल्टर

आता नहीं था लिखना मुझे

ग्राहक ही है सर्वोपरि

कोशिश

कई बार

Poem on sister# Anju kumar # Great personality

best poem on mother# MAA ko sachhi श्रद्धांजलि#mother is mother

मुझे कुछ कहना है,मुझे ये कहना है कि माँ को  सच्ची श्रदांजलि क्या होगी?माँ को याद कर के आंसू बहाना, नहीँ, पुराने वक़्त को रोते रहना,नहीँ, बचपन के हिंडोले में झूले लेते रहना, नहीँ, इनमे से कोई माँ को सच्ची श्रदांजलि नही होगी,माँ की कर्मठता को अपनाना,बिना रुके चलते रहना,ऊँचे सपने देख उन्हें पूरा करने का हर यथासंभव प्रयास करना,न किसी से दुश्मनी,सबसे हिल मिल कर चलना,आगे बढ़ कर आना,क्रिया पर प्रतिक्रिया करना,स्वस्थ है परिहास,जिजीविषा से भरपूर रहना,हार न मानना,प्रेम से परायों को भी अपना बनाना,ये सब सीखना ही माँ को  सच्ची श्रधांजलि होगी,है न

Best poem on mother #मां बिन पूछे भला हाल कौन# मां ईश्वर का पर्याय(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*घंटे भर की दूरी पर था मेरा ननिहाल* पर कभी ना देखा मां को आते जाते अक्सर उठता था मेरे दिल में एक सवाल मां अपने ही घर जाने में क्यों लगा देती है सालों साल??? तब समझ नहीं आता था,अब समझ आता है मां के दिल का हाल मात पिता से ही होता है मायका नहीं रखता उन जैसा कोई भी ख्याल नहीं पूछता कोई मा के जैसे कितने दिन हो गए तुझे लाडो आए मेरा चित हुआ जाए बेहाल ना कोई हाथ पकड़ ले जाता भीतर हर नाते को लिया खंगाल धन भले ही बढ़ गया हो मेरा पर नातों में गरीब सी हो गई हूं रहता चित में यही मलाल नहीं रहे जब नाना नानी मां का धूलि में रम जाता बैग था पर नेहर जाने की तत्परता नहीं रखी थी पाल अब जब उम्र बढ़ने लगी है मेरी समझने लगी क्यों उदासीनता की मां चलने लगी थी चाल

Poem on life (( thought by sneh premchand))

कुछ लोग जेहन में ऐसे बस जाते हैं जैसे बच्चे घर में घुसते ही मां को आवाज लगाते हैं

गोपाल

मैने पूछा हिन्दी से

हो बात तुम्हारे जाने की

For sneh dhawan she left cirawa today  *हो बात तुम्हारे जाने की तो आंख सजल तो होनी थी,  मां जैसा साया छिन जाये ये बिटिया तो फिर रोनी थी*  कितना कुछ अब खो जायेगा, दफ्तर सूना हो जायेगा,  न हम दौडे आयेंगे न तेरा बुलावा आयेगा कितनी राह बतायी तुमने , जीने की कला सिखायी तुमने,  तुम्हारा नहीं कोई सानी है, तुम्हारी याद तो आनी है  कितनी खुशियां है दी तुमने और कितने गम यूं बांटे हैं  सुमन ही सुमन खिले मिल तुमसे, नहीं चमन में कोई भी कांटे हैं इसमें कुछ भी झूठ नहीं, हमने सच ही बतलाया है तेरे स्नेह सानिध्य में मैने वात्सल्य निर्झर पाया है बेसक तुम हमे भुला दो कभी पर हम तो न भुला अब पायेंगे,  ममता भरे तुम्हारे हाथ सदा ही सिर पर चाहेंगे 8 बरस बीत गए धोरा की धरा से आए हुए लम्हा लम्हा बीता अरसा इतना फिर में मन में यादों के बादल छाए हुए तुझ में तो लाडो मुझे जैसे अपना ही अक्स नजर आता है स्नेह डोर बांधी स्नेह ने तुझ संग, हर बिताया लम्हा तुझ संग प्रेममय हो जाता है कुछ नाते दिल से जुड़ते हैं,इस फेरहिस्त में नाम तेरा बहुत ही ऊपर आता है मुलाकात भले ही ना होती हो तुझ से, ...

मां हो गर कौशल्या जैसी

मां का संस्कारित होना बहुत जरूरी

मां पार्वती

सुखद आभास

कृष्ण कृष्ण

गिरधारी

संघर्षों से बिखरे नहीं

आसान नहीं है कृष्ण होना

मैं द्वापर की द्रौपदी

आज ही के रोज

आज ही के रोज धोरा की धरा से हरियाणा में आगमन हुआ था हो बात तुम्हारे जाने की तो आंख सजल तो होनी थी,  मां जैसा साया छिन जाये ये बिटिया तो फिर रोनी थी।  कितना कुछ अब खो जायेगा, दफ्तर सूना हो जायेगा,  न हम दौडे आयेंगे न तेरा बुलावा आयेगा।  कितनी राह बतायी तुमने,जीने की कला सिखायी तुमने,  तुम्हारा नहीं कोई सानी है,तुम्हारी याद तो आनी है।  कितनी खुशियां है दी तुमने और कितने गम यूं बांटे हैं  इसमें कुछ भी झूठ नहीं हम सच सच ही बतलाते हैं।  बेसक तुम हमे भुला दो कभी पर हम तो न भुला अब पायेंगे,  ममता भरे तुम्हारे हाथ सदा ही सिर पर चाहेंगे।

कृष्ण कृष्ण

कृष्ण कृष्ण कहते रहते हो क्या कभी कृष्ण सा बन पाओगे जिंदगी से पहले मौत की तैयारी सत्य ये हजम कर पाओगे अपने ही मामा का वध किया कान्हा ने क्या तुम ये सब कर पाओगे राजा बन कर बने सारथि क्या तुम ऐसा कर पाओगे क्या क्या नहीं छूटा कान्हा से क्या तुम सब ये छोड़ पाओगे मथुरा छूटी,मात पिता छूटे,छूटी राधा प्यारी बाल सखा छूटे,जन्मभूमि छूटी,सच में उनकी जिंदगी थी न्यारी इतना भी आसान नहीं है कृष्ण होना शायद समझ नहीं पाओगे

दूं आवाज तो चले आना

कच्चे धागे,पर पक्का बंधन, दे देना भाई बस एक उपहार, दूँ आवाज़ जब भी दूर कहीं से भी,चले आना बहन के घर द्वार।। औपचारिकता भरा नही ये नाता,p बस प्रेम से इसको निभाना हो आता, उलझे हैं दोनों ही अपने अपने परिवारों में, पर ज़िक्र एक दूजे का मुस्कान है ले आता।। उलझे रिश्तों के ताने बानो को सुलझा कर,अँखियाँ करना चाहें एक दूजे का दीदार, कच्चे धागे,पर पक्का बंधन, दे देना  भाई बस एक उपहार।। एक उपहार मैं और मांगती हूँ, मत करना भाई इनकार, दिल से निकली अर्ज़ है मेरी, कर लेना इसको स्वीकार, माँ बाबूजी अब बूढ़े हो चले हैं, निश्चित ही होती होगी तकरार, पर याद कर वो पल पुराने, करना उनमें ईश्वर का दीदार, उनका तो तुझ पर ही शुरू होकर, तुझ पर ही खत्म होता है संसार, कभी झल्लाएंगे भी,कभी बड़बड़ाएंगे भी, भूल कर इन सब को,उन्हें मन से कर लेना स्वीकार और अधिक तेरी बहना को,  कुछ भी नही चाहिए उपहार।। हो सके तो कुछ वो लम्हे दे देना, जब औपचारिकताओं का नही था स्थान, वो अहसास दे देना,जब लड़ने झगड़ने के बाद भी,बेचैनी को लग जाता था विराम, उन अनुभवों की दे देना भाई सौगात, जब साथ खेलते,पढ़ते, लड़ते,झगड़ते, पर कभी भी न ...

जय श्री राम

करबद्ध हम कर रहे

करबद्ध हम कर रहे परमपिता से यह अरदास मिले शांति दिव्य दिवंगत आत्मा को, है प्रार्थना ही हमारा प्रयास अभाव का प्रभाव बताता है कोई जीवन में कितना होता है खास चित में करुणा,प्रेम,अपनत्व की बहती रही त्रिवेणी आजीवन, कर्म करना सदा आया तुझे रास कभी नहीं कोसा परिवेश,परिस्थिति को कर्मों से भाग्य को बदल जीवन में लाई उजास भगति धारा बही सदा चित में तेरे निर्मल चित जैसा खुला अनंत आकाश धरा सा धीरज उड़ान गगन सी दया का चित में रहा सदा वास शून्य से शिखर तक के सफर में,किए मां जाई तूने विशेष प्रयास उत्तम नहीं अति उत्तम निभाया हर किरदार तूने हुआ सतत अभिवर्ध न नहीं हुआ ह्रास कभी नहीं रुकी कभी नहीं थकी सतत करती रही तूं सदा विकास कब है बदल जाता है था में हो ही नहीं पाता विश्वाश जिंदगी भले ही लंबी ना रही तेरी जितनी भी थी,थी बड़ी खास क्रम में सबसे छोटी पर कर्मों में बड़ी सबसे अलग हो रहा तेरे आभामंडल का दिव्य प्रकाश आवागमन तो यूं हीं लगा रहता है जीवन में पर दिल में बहुत ही कम करते हैं वास इस फेरहिस्त में नाम तेरा आता है बहुत ही ऊपर नहीं शब्द जो बता पाऊं तुम कितनी थी खास ओ डिप्लोमेट तुम तो सच में ही र...

मैने पूछा

प्रेम के मायने

जो लोग किसी किसी से प्यार करते हैं वे प्रेम का सच्चा अर्थ ताउम्र जान नहीं पाते दरअसल वे प्रेम नहीं मोहपाश से जुड़े होते हैं मोह तालाब सा सीमित परिधि और व्यास वाला होता है जो सबसे प्यार करते हैं उन्हें प्रेम का अर्थ बखूबी समझ आता है वे सागर से गहरे होते हैं जिनकी थाह पाना सरल नहीं गगन सा अनंत विस्तार होता है उनकी सोच का उनकी नजर नहीं नजरिया विहंगम होता है संवेदनशील,सहनशील और अच्छे दिल के होते हैं कभी अपनी परिस्थिति को कोसते नहीं,उन्हें कर्म की कुदाली चला मनःस्थिति के अनुरूप करने की पुरजोर कोशिश करते हैं वे माथा देख कर टीका नहीं निकालते न ही सूरजमुखी के फूल जैसे होते हैं जहां स्वार्थ की धूप खिले वहीं तत्क्षण मुड जाएं वे तो जग रूपी कीचड़ में कमल से खिले रहते हैं हर हालत और हालात में अपनी आत्मा का हुलिया नहीं बदलते अपनी महक से औरों को भी लम्हा लम्हा सुवासित करते रहते हैं श्वास भले ही गिनती के हों उनके पर उनके कर्मों की गूंज युगों युगों के बाद भी कायनात को गुंजित रखती है कोई अतिशयोक्ति न होगी गर इस फेरहिस्त में तेरा नाम सबसे ऊपर रखूं *उम्र छोटी पर कर्म बड़े*

कौन कहता है

घने तमस रही तूं जैसे प्रकाश

पानी सी निर्मल

पानी की तरह निर्मल धरा जैसी धीरज वाली गगन जैसे सपने देखने वाली पहाड़ों जैसी इरादों में  अडिग बयार जैसी शीतल खिली हुई जैसे प्रकृति मासूम और निश्चल बच्चे सी ज्ञान में बड़ों सी गहरी सागर सी बहती नदी सी मधुर कोयल सी विनम्र कपास सी इस लड़की को देखा तो ऐसा लगा जैसे अपनत्व की बौछार जैसे स्नेह सूत्र में सबको पिरोने वाली जैसे मित्रों में सब की चहेती हो जैसे हर नाते की गिरह खोले जाती हो जैसे वात्सल्य का कल कल निर्झर बहाती हो जैसे अपने व्यवहार से बेगाने को भी अपना बनाती हो जैसे शून्य से शिखर पर पहुंच कर भी बिल्कुल ना इतराती हो जैसे भगति धारा बहाती हो जैसे,,,.................

मैं जब मैं ना रहे

मैं जब मैं ना रहे विलय हो जाए हम में वहीं प्रेम कहलाता है आँखें और चेहरा पढ़ना आ जाए तो प्रेम सफल हो जाता है जिसने पढ़ ली पाती प्रेम की फिर और क्या पढ़ने को रह जाता है प्रेम तो वह सागर है जिसमें इंसाआकंठ डूब जाता है प्रेम से जग हो जाता है सुंदर नजर नहीं नजरिया ही पूर्णत बदल जाता है प्रेम तो वह अंगद नाद है जो सरगम प्रीत की गुनगुनाता है मैं जब मैं ना रहे,विलय हो जाए हम में वहीं प्रेम कहलाता है

देखा जब मां की।ओर

हसरतभरी निगाहों ने जब देखा माँ की ओर सच मे माँ लगती थी जैसे हो कोई खिली सी भोर।। सपने देखेगी अपनी आँखों से हमारे लिये, उन्हें पूरा करेगी अपनी मेहनत से हमारे लिए, बनाया होगा जब माँ को खुद ने देख कर अपनी ही रचना,हो गया होगा भाव विभोर।। चलो मन वृन्दावन की ओर प्रेम का रस जहाँ छलके है, कृष्ण नाम से भोर।। माँ यशोदा  ही देख कान्हा की लीलाएँ कहती थी प्रेम से नन्द किशोर।।। मैं नही खायो माखन मईया सच नहीं मैं हूँ माखनचोर। माँ बच्चों की ऐसी ही कहानियां सुन द्रवित हो जाते हैं हिवड़े कठोर।।

अब माधव नहीं आते हैं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*कितना भी बुला लो चाहे मगर अब माधव नहीं आते हैं* *दुशासन तो हर गली,कूचे,नुक्कड़ पर0 कहीं खड़े मिल जाते हैं* *अब कोई द्रौपदी किसे पुकारे सब गूंगे बहरे से नजर आते हैं* *गुनाहगार को दंडित न किया गया तो  फिर प्रश्नचिन्ह लग जाते हैं* *सब सुरक्षित और निर्भय रहें है,यह जिम्मेदारी गण तंत्र दोनों की, क्यों सब भूले जाते हैं ???? *कितना भी बुला लो चाहे मगर अब माधव नहीं आते हैं* *चांद पर पहुंचे भी तो क्या पहुंचे गर धरा पर अपनी ही बहन बेटियों को  खतरे में हम पाते हैं* *कलेजे का टुकड़ा होती हैं बेटियां यह क्यों भूले जाते हैं* *अब माधव नहीं आते हैं पर दुशासन तो हर मोड,गली,कूचे पर मिल जाते हैं* *कभी दिल्ली कभी मणिपुर अब दहला हरियाणा* हम भीष्म मौन सा क्यों अपनाते हैं *गलती के लिए सख्त दंड का हो प्रावधान* कहा चाणक्य ने इस बात की गांठ क्यों चित में नहीं लगाते हैं* *कितना भी बुला लो चाहे मगर अब माधव नहीं आते हैं* *दुशासन हर मोड पर कहीं भी मिल जाते हैं* *अब खुद ही बनो कृष्ण तुम सारे* करो हर दुशासन का स्वयं संहार आखिर कब तक होता रहेगा??? चीर हरण,शोषण और बलात्कार *युग बदले पर...

अब माधव नहीं आते हैं

कड़वा है

नैराश्य का तमस हटा(( दिल की पाती स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

नैराश्य का तमस हटा, आशा की आरुषि का प्रादुर्भाव करना तुझे बखूबी आता था हर हालत में,हर हालातों में जिजीविषा का भाव तुझे दिल से भाता था भाग्य नहीं सौभाग्य रहा ये मेरा  जो तुझ से मां जाई का नाता था हर नाते के ताने बानो को बुन देती थी स्नेह सूत्र से, तुझे दिल में रहना बखूबी आता था बेगाने भी हो जाते थे अपने दिल प्रेम का नगमा गाता था भगति भाव से आप्लावित चित तेरा मंदिर सा हो जाता था बजरंगी की भगति करने वाली  चित तेरा राम मय हो जाता था प्रेम सुता! तूने निभाया प्रेम सही मायनों में, तेरे होने से ज़र्रा ज़र्रा प्रेममय हो जाता था चित में करुणा,प्रेम और कर्म की त्रिवेणी को सतत बहाना तुझे बखूबी आता था हर नाते को सींचा मधुर संवाद और संबोधन से, हर संवेदना को बड़ी विनम्रता से छूना तुझे आता था किसी भी क्रिया के प्रति तेरी प्रतिक्रिया हमें उस क्रिया की महता समझाती थी इतने प्रबल और सटीक भावों से करती थी कोई भी क्रिया कर्म तूं, उसकी परिभाषा बन जाती थी तूं किस माटी की बनी थी मां जाई हैरानी भी खुद हैरान हो जाती थी एक नहीं तुझे सबके ही दिलों में बसना आता था कनेक्टिविटी विशेष गुण रहा तेरे ...

एकांत एक सुनहरा अवसर है

सीखो श्री कृष्ण से

मायके की भी एक उम्र होती है