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नैराश्य का तमस हटा(( दिल की पाती स्नेह प्रेमचंद द्वारा))


नैराश्य का तमस हटा,
आशा की आरुषि का प्रादुर्भाव करना तुझे बखूबी आता था

हर हालत में,हर हालातों में जिजीविषा का भाव तुझे दिल से भाता था

भाग्य नहीं सौभाग्य रहा ये मेरा 
जो तुझ से मां जाई का नाता था

हर नाते के ताने बानो को बुन देती थी स्नेह सूत्र से,
तुझे दिल में रहना बखूबी आता था

बेगाने भी हो जाते थे अपने
दिल प्रेम का नगमा गाता था

भगति भाव से आप्लावित चित तेरा मंदिर सा हो जाता था
बजरंगी की भगति करने वाली 
चित तेरा राम मय हो जाता था

प्रेम सुता! तूने निभाया प्रेम सही मायनों में,
तेरे होने से ज़र्रा ज़र्रा प्रेममय हो जाता था

चित में करुणा,प्रेम और कर्म की त्रिवेणी को सतत बहाना तुझे बखूबी आता था

हर नाते को सींचा मधुर संवाद और संबोधन से,
हर संवेदना को बड़ी विनम्रता से छूना तुझे आता था

किसी भी क्रिया के प्रति तेरी प्रतिक्रिया हमें उस क्रिया की महता समझाती थी
इतने प्रबल और सटीक भावों से करती थी कोई भी क्रिया कर्म तूं,
उसकी परिभाषा बन जाती थी
तूं किस माटी की बनी थी मां जाई
हैरानी भी खुद हैरान हो जाती थी
एक नहीं तुझे सबके ही दिलों में बसना आता था
कनेक्टिविटी विशेष गुण रहा तेरे व्यक्तित्व का,तेरा औरा सबको ही मोहित कर जाता था

नैराश्य का तमस हटा,
आशा की आरुषि का प्रादुर्भाव करना तुझे बखूबी आता था


तर्क की चाशनी में डुबो कर सम्यक ज्ञान की बातों को मधुर बनाना आता था

बच्चों में बच्चों सी,बड़ों में बड़ी सी ये हुनर जन्मजात तुझे आता था

शून्य से शिखर तक के सफर में तुझे कीचड़ में कमल सा खिलना आता था

नैराश्य का तमस हटा,
आशा की आरुषि का प्रादुर्भाव करना तुझे बखूबी आता था

नूर ए जिंदगी कहा जाए तुझे तो कोई अतिशयोक्ति न होगी

रोशनी ए चिराग कहा जाए तुझे तो सच्चे एहसासों की उम्दा अभिव्यक्ति होगी

सअल्फ़ाज़ ए किताब कहा जाए तो वह भी इतना सच होगा जैसे किसी बच्चे में मासूमियत का होना

गजल ए रूहानियत,धड़कन ए दिल,महक ए कुसुम,नज़्म ए मौसिकी,परवाज़ ए पंख,,जश्न ए जिंदगी, बहार ए चमन हर उपमा पड जाती है छोटी जब तेरा करने लगती हूं बखान
बहुत छोटा शब्द है मां जाई
तुझ को कहना मात्र महान
तुझे तो चित,चितवन,चेतन,अचेतन
सर्वत्र ही रहना आता था

नैराश्य का तमस हटा,
आशा की आरुषि का प्रादुर्भाव करना तुझे बखूबी आता था
क्रम में सबसे छोटी पर कर्मों में बड़ी सबसे,तेरा हर कथन जैसे दिल के तपते मरुधर को सहलाता था

Comments

  1. अति उतम रचना क्या खूब लिखा है
    मां जाई के बारे में
    उर्दू के शब्दों का अनोखा मेल सच में हृदय स्पर्श रचना
    भाग्य नहीं सौभाग्य रहा ये मेरा
    जो तुझ से मां जाई का नाता था

    बहुत ही सुन्दर पंक्तियां


    शून्य से शिखर तक के सफर में तुझे कीचड़ में कमल सा खिलना आता था

    भाव भरी कविता ने निशब्द कर डाला

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