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अब माधव नहीं आते हैं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*कितना भी बुला लो चाहे मगर
अब माधव नहीं आते हैं*

*दुशासन तो हर गली,कूचे,नुक्कड़ पर0कहीं खड़े मिल जाते हैं*

*अब कोई द्रौपदी किसे पुकारे
सब गूंगे बहरे से नजर आते हैं*

*गुनाहगार को दंडित न किया गया तो फिर प्रश्नचिन्ह लग जाते हैं*

*सब सुरक्षित और निर्भय रहें
है,यह जिम्मेदारी गण तंत्र दोनों की,
क्यों सब भूले जाते हैं ????

*कितना भी बुला लो चाहे मगर
अब माधव नहीं आते हैं*

*चांद पर पहुंचे भी तो क्या पहुंचे
गर धरा पर अपनी ही बहन बेटियों को खतरे में हम पाते हैं*

*कलेजे का टुकड़ा होती हैं बेटियां
यह क्यों भूले जाते हैं*

*अब माधव नहीं आते हैं
पर दुशासन तो हर मोड,गली,कूचे पर मिल जाते हैं*

*कभी दिल्ली कभी मणिपुर अब दहला हरियाणा*
हम भीष्म मौन सा क्यों अपनाते हैं

*गलती के लिए सख्त दंड का हो प्रावधान* कहा चाणक्य ने
इस बात की गांठ क्यों चित में नहीं लगाते हैं*

*कितना भी बुला लो चाहे मगर
अब माधव नहीं आते हैं*
*दुशासन हर मोड पर कहीं भी मिल जाते हैं*

*अब खुद ही बनो कृष्ण तुम सारे*
करो हर दुशासन का स्वयं संहार
आखिर कब तक होता रहेगा???
चीर हरण,शोषण और बलात्कार

*युग बदले पर सोच न बदली
देता है सुनाई क्रंदन और हाहाकार*
*भोग्या नहीं भाग्य है नारी*
कब करोगे इस सत्य को स्वीकार??

*जान कर सत्य, मान कर सत्य
फिर भी दोषी गुनाह किए जाते हैं*

*कितना भी बुला लो चाहे मगर
अब माधव नहीं आते हैं*

*गुड़ियों से खेलना छोड़ो तुम अब बालाओं!
जूडो कराटे सीखो,आत्मरक्षा के लिए जो अति जरूरी*

सचेत रहो,जागरूक रहो,
संकोच,डर,शोषण से रखो अब दूरी*

*करे अगर कोई तंग तुम्हें,चुप न रहो
क्यों अल्फ़ाज़ लबों पर नहीं फिर आते हैं???
दबने वाले को और दबाना है
 दस्तूर ए जहां,
फिर अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं
कानून जानो सारे महिला सुरक्षा के,
देखो माधव नहीं आते हैं
*खुद ही बनो काली और दुर्गा
फिर दीए रोशन हो जाते हैं*


*चीर हरण पर जहां हुई थी महाभारत
यह वही धरा हरियाणे की*

*एक यही जज्बा डोल रहा चित में
हो लाज सुरक्षित बेटी और भाणा की*

*मिले न्याय फिर इस बार भी द्रौपदी को,यह बेटी हरियाणे की*

*स्नेह से पहले आता सम्मान है*
बहन बेटियों से तो होते बड़े प्यारे नाते हैं
*अब स्वयं बनो कृष्ण तुम सारे,
मुरली वाले कान्हा सुदर्शन चक भी चलाते हैं*

*उठाओ सुदर्शन करो अंत बुराई का
आखिर कब तक करते रहोगे इंतजार????
*अब खुद ही बनो कृष्ण तुम सारे
करो हर दुशासन का संहार*
*मर्यादित जीवन जीना सीखो  
शिक्षा भाल पर सोहे संस्कार*

*उद्विग्न है चित, नम हैं नयन*
फिर किसी द्रौपदी का चीर हरण होते हुए हम पाते हैं
कितना भी बुला लो चाहे मगर
अब माधव नहीं आते हैं
दुशासन तो हर मोड,गली,कूचे पर
कहीं भी मिल जाते हैं


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