Skip to main content

मुश्किल है मां के प्यार को शब्दों में बयान करना

माँ के प्यार को शब्दों में व्यक्त करना बहुत मुश्किल है 


दुनिया में माँ से ज़्यादा प्यार कोई और कर ही नहीं सकता

जीवन की राह में आने वाली सभी बाधाओं को हटाती है माँ 

माँ हमारे बारे में सब कुछ जानती है … 
बिना कुछ कहे ही क्या चाहिए.. माँ समझ जाती है 

माँ बिना थके हम सब बच्चों की इच्छा पूरी करना चाहती थी 

पढ़ा लिखा कर एक अच्छा इंसान बनाना चाहती थी और हमेशा ख़ुश देखना चाहती थी हमें .. 

माँ से ही वजूद हैं हम सब भाई बहनों का .. 
कुछ भी कहना कम है 

चूल्हे की
जलती रोटी सी
तेज आँच में जलती माँ

सिर पर
रखे हुए पूरा घर
अपनी –
भूख -प्यास से ऊपर ,
घर को
नया जन्म देने में
धीरे -धीरे गलती माँ !

सब दुनिया से रूठ रपटकर
जब मैं बेमन से सो जाती 

हौले से वो चादर खींचे
अपने सीने मुझे लगाती

खूब मनाती रात भर 
फिर खाना खिलाकर सुलाती माँ 

जब भी बुख़ार आया हमें 
या हुआ चिकनपाक्स.. 
रात रात भर जगती 
और आँचल से बदन को सहलाती माँ 

माँ तुम्हारा स्नेहपूर्ण स्पर्श
अब भी सहलाता है मेरे माथे को
तुम्हारी करुणा से भरी आँखें
अब भी झुकती हैं मेरे चेहरे पर

अब भी कानों में पड़ता है
तुम्हारा स्वर
कितना थक गई हो बेटी
और तुम्हारे निर्बल हाथों को मैं
महसूस करती हूँ अपनी पीठ पर
माँ
क्या तुम अब सचमुच नहीं हो

मेरी आस्था, मेरा विश्वास, मेरी आशा
सब यह कहते हैं कि माँ तुम हौ
मेरी आँखों के उजाले में
मेरे कंठ की माधुर्यपूर्ण वाणी में
चूल्हे की गुनगुनी भोर में
दरवाज़े की सांकल में
मेरे मन मंदिर में तुम ही हो .. 

मेरे चारों ओर घूमती ये धरती 
तुम्हारा ही तो विस्तार है माँ 

बहुत याद आती है माँ
जब भी होती हूं मैं परेशान

याद आता है…. मेरे और अंजू के सफल होने पर
तेरा दौड़ कर खुशी से गले लगाना 
तेरी ख़ुशी का ठिकाना न होना 

तुम्हारा स्नेह भरा प्रेम बहुत याद आता है ..

एक बात लेकिन जेहन में मेरे हलचल
मचाती है
जितना तूने दिया उसका छंटाक भर भी देने में बच्चों को क्यों दिक्कत आती है
मां तो पल भर भी बीमार बच्चे को नहीं छोड़ती दूसरे कमरे में भी
फिर वहीं औलाद जीवन की सांझ में उसके कमरे में आने की मात्र औपचारिकता का फ़र्ज़ निभाती है

ज़रा जेहन पर डालो जोर ज़रा
और सोचो क्या तुमने मां को समय और मधुर वाणी का दिया उपहार???

अंतर्मन बोलेगा सदा सच्चाई
नज़रे नहीं कर पाओगे चार

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...