पानी की तरह निर्मल
धरा जैसी धीरज वाली
गगन जैसे सपने देखने वाली
पहाड़ों जैसी इरादों में अडिग
बयार जैसी शीतल
खिली हुई जैसे प्रकृति
मासूम और निश्चल बच्चे सी
ज्ञान में बड़ों सी
गहरी सागर सी
बहती नदी सी
मधुर कोयल सी
विनम्र कपास सी
इस लड़की को देखा तो ऐसा लगा
जैसे अपनत्व की बौछार
जैसे स्नेह सूत्र में सबको पिरोने वाली
जैसे मित्रों में सब की चहेती हो
जैसे हर नाते की गिरह खोले जाती हो
जैसे वात्सल्य का कल कल निर्झर बहाती हो
जैसे अपने व्यवहार से बेगाने को भी अपना बनाती हो
जैसे शून्य से शिखर पर पहुंच कर भी
बिल्कुल ना इतराती हो
जैसे भगति धारा बहाती हो
जैसे,,,.................
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