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जीवन के सफ़र मे ओ हमसफ़र ( thought by Sneh premchand)

जीवन के सफर में, ओ! हमसफ़र,
देखो सदा यूंही साथ निभाना।
प्रेमडोर न टूटे कभी,
इस बंधन को गहरा करते जाना।।

समय के संग संग ये नाता,
हिना सा, और भी गहरा होता जाए।
लड़ झगड़ कर भी संग बस,
 एक दूजे का ही भाए।

खून का तो है नही,
बस है ये प्रेम  औऱ विश्वास का नाता।
अनजान राह के जब मिल जाते हैं मुसाफिर,
उनको निभाना बखूबी है आता।।

ज़िन्दगी के इस सफ़र में,
मात पिता के बाद,
 हमसफ़र सा पुर्सान ए हाल नहीं मिलता।

साजन गर जीवन का इंद्रधनुष, तो सजनी जीवन की रंगोली है।
एक दूजे के संग संग होने से ही,
फिर सजती हर दीवाली और होली है।।

मात्र तन का नहीं,ये तो रूह का रूह से है बन्धन,
यूं ही खनकते रहें छम छम,
पहनाए हैं जो साजन ने कंगन।।

खनकती रहे पायल की रुन झुन रुन झुन्न,
माथे पर यूं हीं बिंदिया चमकती रहे,
प्रेम से सरोबार व्यक्तित्व दोनों का
 सदा यूं ही महकता रहे।।

दुआओं की हो रही है बरखा,
तन मन इसमें भिगोते जाना,
जीवन के सफ़र मे ओ हमसफ़र,
देखो सच्चा साथ निभाना।।

अनजान राहों पर बड़ी सहजता से
देखो तुमने ही तो चलना सिखाया है।
एक तेरे होने से जीवन जैसे,
जुगनू सा जगमगाया है।।
ध्रुव तारे से चमकते रही जीवन में मेरे
तूं ही तो मेरा सर माया है।।
अग्निपथ से इस जीवन पथ मे,
तूं सबसे शीतल छाया है।।

छाया बनी रहे,ज़िन्दगी चलती रहे,
यूं ही साथ निभाते जाना,
बदलते रहते हैं हर्फ ज़िन्दगी की किताब के,पर प्रेम के ढाई अक्षर भूल न जाना।।

प्रेम डोर न टूटे कभी,
इस रिश्ते को गहरे करते जाना।।
नहीं हो सकता मधुर,
कभी इससे कोई भी कहीं प्रेम तराना।।
        दिल की कलम से
        स्नेह प्रेमचन्द

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