बता पार्थ तेरे कौन थे माधव
जीवन रण की महाभारत में जिसने तुझ को विजय दिलाई
बता पार्थ तुम्हे इतनी कम उम्र में इतनी गहरी समझ कहां से आई
बता पार्थ तूने सीखी कहां से कला बोलने की,तेरी मधुर वाणी और सौम्य व्यवहार ने सबके चित में जगह बनाई
बता पार्थ तूने कैसे त्याग प्रमाद को ताउम्र,कर्मठता की सदा बीन बजाई
बता पार्थ तू कैसे धरा से धीरज को कर धारण बच्चों के हर प्रश्न को इतने अच्छे से कर देती थी एक्सप्लेन
ऐसी बुद्धि और ऐसा प्रस्तुतीकरण तूं कहां से लाई
सहानुभूति तो बहुत कर लेते हैं पर empathy का गुण नहीं होता सबके भीतर,उस गुण को आत्मसात करने की जागृति कैसे तेरे जेहन में आई
बता पार्थ तूने कहां से सीखा विचरण करना अंतर्मन के गलियारों में
आत्म निरीक्षण,आत्म मंथन कर किया आत्मसुधार अपने कर्मों और विचारों में
बता पार्थ तूने सीखा कहां से नातों को स्नेह की खाद,परवाह की धूप और अपनत्व के पानी से सींचना,तेरी इस कला को देख कायनात भी नतमस्तक हो आई
बता पार्थ तूं इतनी ऊंचाई पर पहुंच कर भी इतनी सहज कैसे थी
अहंकार और गरुर की कभी नहीं तूने
बीन बजाई
बता पार्थ परदेस में भी तूने बना लिया लोगों को कैसे अपना,
यह कला लगता है मां माधव से तुझ में सहज स्वाभाविक रूप से आई
माना मां माधव थी तेरी पार्थ
पर तूं भी बनी माधव जाने कितनी ही ज़िंदगानियों की, मेरी समझ को बात इतनी समझ में आई
तेरा चित भी सुंदर चितवन भी चारु
कहीं कभी कोई भी कमी नहीं दी दिखाई
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