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उठो पार्थ गांडीव उठाओ

उठो पार्थ! गांडीव उठाओ
फिर दुश्मन ने आतंक फैलाया है
जब जब होती है हानि धर्म की
माधव ले अवतार धरा पर आया है

मात्र 26 लोग ही नहीं मरे इस आतंकी हमले में,
मर गए सपने,आशा,उम्मीदें,विश्वास
मर गई मानवता,हुई हावी दानवता
अपनों के आगे अपनों की ही बिछा दी दरिंदों ने लाश
नासूर दे गए ऐसे दरिंदे,ले प्रतिशोध
मरहम लगाने का समय अब आया है
उठो पार्थ गांडीव उठाओ
घड़ा पाप का कंठ तक भर आया है
लुटे सुहाग,उजड़ी कोख,तन मन व्यथित हो आया है

मजहब कहां सिखाता है आपस में बैर रखना,
मजहब के नाम पर जैसे कोई हर सकता है किसी के श्वास
इस गुनाह का तो ही प्राश्चित कम है
ऐसा चित को होता आभास
मर गया मन का उल्लास,उमंग,जिजीविषा,ललक
चित,चितवन,चेतन,अचेतन,चित्र,चरित्र सब लगता उदास

सोच से सोचा भी नहीं जाता दुख परिवार जनों का
कैसे उन्हें जीवन अब आयेगा रास??
मर गया भरोसा इंसान का इंसान पर
रूह रेजा रेजा,टूटी टूटी सी आस

उठो पार्थ विश्वास जगाओ
करो अंत बुराई का,चित चिंता हरने का पल आया है
 अच्छाई का दीप जलाओ
देखो घना अंधकार हो आया है
विनम्र हैं हम कमजोर नहीं
समय सबक सिखाने का आया है

ऐसा भी कोई कैसे कर सकता है
विश्वाश को भी नहीं होता विश्वाश
तन जख्मी रूह रेजा रेजा
चित भी लगता है उदास उदास
घर में घुस कर मार गए वे
मौत को ले आए जिंदगी के पास
इतना जघन्य अपराध ना देखा कभी
ना सुना कभी,
उनकी रूह ने पहना था हिंसा का घिनौना लिबास
उठो पार्थ गांडीव उठाओ
सुरक्षा,निर्भयता का बिगुल बजाओ
साहस शौर्य सब है तुम्हारे पास
साम,दंड,भेद,चाणक्य नीति अपनाओ अब तुम भी,होगा सफल सच्चा प्रयास
हर प्रयास सफल नहीं होता,पर सफल होता कोई ना कोई प्रयास ही है
इस सत्य को आत्मसात करने का पल आया है
उठो पार्थ गांडीव उठाओ
अनीति,अत्याचार,आतंक से मुक्त होने का समय अब आया है

शस्त्रहीन पर वार किया
वे कायर,नपुंसक मानवता के अपराधी हैं
निर्दोषों के खून से रंगी यह काश्मीर की वादी है
पूछ पूछ कर हिन्दू मारा,
मौत का मचा दिया तांडव,क्रूरता ही उनके चित चेतन में करती रही बस वास
मन के रावण का करो दमन अब
मन के राम को जगाने का वक्त अब आया है
उठो पार्थ गांडीव उठाओ
संकल्प को सिद्धि से मिलने का पल अब आया है
विश्वपटल से जमीदोज हो जाए आतंक अब
सबको निर्भय करने का वक्त अब आया है

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