जग से बेशक चली जाती है
पर जेहन से कभी नहीं जाती मां
जब भी लगती थी तपिश ज़माने की
ठंडी सी फुहार बन जाती थी मां
उलझ से जाते थे जब जिंदगी के ताने बाने
बड़े प्रेम से सुलझाती थी मां
लगती थी गर चोट मुझे
मरहम झट से बन जाती थी मां
उथल पुथल होती थी जब भी कोई मन से
सहजता पल भर में ला देती थी मां
जिंदगी की किताब के नहीं आते थे समझ जब हर्फ कई,मिनटों में सब समझा देती थी मां
हूक सी उठती थी सब सीने में
वात्सल्य निर्झर बहा देती थी मां
चाहिए होता था जब भी कुछ मुझे
यथासंभव दिला देती थी मां
आती थी जब कोई भी परेशानी
झट समाधान बन जाती थी मां
उपलब्ध सीमित संसाधनों में
मां कब,कैसे,कितना कर लेती थी
मुझे आज तलक भी समझ नहीं आता
एक बात आती है समझ
मां बेटी का जब में सबसे प्यारा नाता
मां से सुखद कोई अहसास नहीं
मां से अनमोल कोई साथ नहीं
कौन सा दिन मां के बिन है
फिर एक ही दिन मदर्स डे कैसे हो सकता है
मेरी समझ को ये समझ नहीं आता
सबसे धनवान वही है जग में
जो मां का साथ प्रेम है जग में पाता
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