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भोग्या नहीं भाग्य है नारी(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*चित निर्मल चितवन भी चारु* 
चित्र,चरित्र में कर्मठता के होते हैं दीदार
*भोग्या नहीं भाग्य है नारी*
है नारी से ही यह सुंदर संसार

मधुर बोली,उत्तम व्यवहार,अथाह 
ज्ञान का अकूट भंडार
संतुलन,संयम,सहजता की त्रिवेणी बहती चित में सदाबहार
धरा सा धीरज,उड़ान गगन सी
रहा प्रेम ही उसके हर नाते का आधार 

मानो चाहे या ना मानों
*नारी धरा पर ईश्वर का सर्वोतम उपहार*
अपनी हदों की सरहद से वाकिफ होती है बखूबी,
दायरे में रह कर निभाती है किरदार
संतुलन,संयम,सहजता की त्रिवेणी बहती चित में जिसके सदाबहार

अपनी जान पर खेल हमें इस जग में लाने वाली नारी को,
 मिले स्नेह सम्मान का पूरा अधिकार
भोग्या नहीं भाग्य है नारी
है नारी से सुंदर संसार

नारी के होने से ही बोलने लगते हैं घर की चौखट,दहलीज दर ओ दीवार
पत्ते पत्ते बूटे बूटे में चेतना करने लगती है श्रृंगार

काम से जा कर काम पर जा कर काम पर ही लौटने वाली नारी
को जिम्मेदारी संग मिलें सारे अधिकार
चित निर्मल,चितवन भी चारु
चेतन अचेतन चित्र चरित्र में बहती सदा ही स्नेह धार


वात्सल्य का कल कल बहता निर्झर दिल में,नहीं शब्द कोई ऐसे जो प्रकट कर पाएं आभार

अधिक की अभिलाषा नहीं है उसके चित में,
बस हो मीठी बोली और उम्दा व्यवहार

प्रेम से पहले चाहती सम्मान है
शिक्षा भाल पर नारी ही सजाती है संस्कार

महिमामंडित भले ही ना करो नारी को
पर चित में उसके लिए ना पालो कोई विकार

बाबुल की राजकुमारी बने साजन की महारानी
तन मन धन से सींचती है नारी अपना परिवार

अपशब्द बोलना,हाथ उठाना नारी पर,
ये तो करते हैं मूढ़,अधम,जाहिल,मंदबुद्धि,ग्वार

हिंसक प्रवृति नारी के लिए तो सच खोल देती है नरक के द्वार

घर को जन्नत बनाने वाली से ही होते हैं होली और दिवाली,
पालो चित में ऐसे विचार 

लक्ष्मी,सरस्वती,दुर्गा का वास होता है नारी में,
कोमल है कमजोर नहीं,करो इस सत्य को स्वीकार

नारी से ही हैं इस जग में, उत्सव,उल्लास,उमंग,ऊर्जा
जिजीविषा,शिक्षा,संस्कार

छल नहीं बल है नारी
पग पग पर करती वह उद्धार

भरोसा ही परोसा है नातों को उसने
कुछ किया दरगुज़र कुछ किया दरकिनार

शांति बनी रहे 
सदा यही सोचा उसने,यही हमारी भारतीय संस्कृति और संस्कार

निरस्त नहीं दुरस्त करती है नातों को,सदा बहाती प्रेम की धार

*भोग्या नहीं भाग्य है नारी*
हमारे सपनों को वही देती आकार

मां रूप में तो नारी 
सच में ईश्वर का अवतार
अर्धनारीश्वर रूप बताता है शिव का
नर नारी दोनों से चलता है ये संसार
एक दूजे बिन दोनों का अस्तित्व है खंडित खंडित सा,
स्नेह,सौहार्द,समर्पण से ही चलता है परिवार

तिनका तिनका जोड़ कर मकान 
को घर बनाती है नारी
फर्श से अर्श तक का सफर तय कर लेती है अपने हौसलों से,जाने ये कायनात है सारी
पल पल चित में होता उसके करुणा का संचार

बखूबी जानती है नारी 
*प्रेम ही हर नाते का आधार*

लम्हा लम्हा सोचती है अपनों के बारे में,
पतझड़ में भी ला देती है बसंत बहार
रिश्तों की उधड़न की करती रहती है तुरपाई,
धरा सा धीरज उड़ान गगन सी
ऐसा उसकी सोच का आकार

संकल्प को मिला ही देती है सिद्धि से
हौंसला ले आती है जाने कहां से बेशुमार
शक्तिश्वरूपा के चित में आंतरिक सौंदर्य का,
निस दिन होता रहता निखार

दिल पर दस्तक, जेहन में बसेरा
दिमाग में उसी की आकृति उसी का आकार
*भोग्या नहीं भाग्य है नारी*
सदा प्राथमिक रहता उसके लिए परिवार
अपनी जान पर खेल हमें इस दुनिया में लाने वाली को मिले स्नेह सम्मान का पूरा अधिकार

नारी के होने से ही बोलने लगते हैं घर की दहलीज,चौखट, दर ओ दीवार
कण कण जर्रे जर्रे में होने लगता है चेतना का संचार

हमारे भीतर छिपे हनुमान को पहचान लेती है नारी,
असीमित, अथाह संभावनाओं में बेहरतीन के कर लेती है दीदार

हमसे हमारा ही परिचय करवाती है नारी
सच हमारे बिखरे बिखरे से व्यक्तित्व की वह शिल्पकार

संघर्ष चुनौतियों से नहीं कभी 
घबराती 
कर्म संयम और विनम्रता रहे उसके सच्चे अलंकार
अग्निपथ को सहजपथ बनाती एक नहीं जाने कितनी ही बार

चित निर्मल चितवन भी चारु
चित्र,चरित्र में भी कर्मठता के होते हैं दीदार

आज देश के सर्वोच्च पद पर आसीन है नारी
 सत्य जाने सारा संसार



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