तुलसीदास जी से जब किसी ने पूछा क्या रामचरितमानस में कोई ऐसी चौपाई है जो पूरी रामायण का सार हो
तुलसीदास जी ने यह चौपाई बताई
**जहां सुमति तह संपति नाना
जहां कुमति तहै विपत्ति नाना**
भावार्थ है जहां हम अच्छे दिमाग से सोचते और करते हैं तो सुख,समृद्धि,वैभव, सफलता और खुशियां जिंदगी की चौखट पर दस्तक देती हैं
और जहां बुरी मति यानि विकारों का चयन होता है वहां अनेक मुसीबतों से हमारा सामना होता है और परिणाम रावण समान होता है
कुमति ही हमें नशे के प्रति आसक्त करती है अगर हम अपने दिलों दिमाग का सही प्रयोग कर नशों के जंजाल में नहीं फंसते तो विनाश के बादल छट जायेंगे
किसी ने सही कहा है
*बोए पेड़ बबूल के तो आम कहां से खाए*
अर्थात अगर हम नशों का चयन करेंगे
तो जीवन में सुख समृद्धि की कामना कैसे कर सकते हैं
*कड़वा है मगर सत्य है*
स्वर्ग से इस जीवन को नहीं नर्क बनाना है
नशों से रहो दूर सदा,
इस धरा पर दोबारा नहीं आना है
शराब को हम नहीं पीते,
शराब हमें पीती है
दलदल से इस चक्रव्यूह के भीतर हमें नहीं जाना है
एक बार जो कर गए प्रवेश इसमें
लगता फिर मुश्किल बाहर आना है
स्वर्ग से इस जीवन को नहीं नर्क बनाना है
हमसे जुड़े हमारे पारिवारिक सदस्य भी होते हैं प्रभावित इससे,
सत्य यह सारे जग ने जाना है
नहीं हो सकती फिर शौक और जरूरतें पूरी उनकी,
बुना हो जिसका उन्होंने ताना बाना है
व्यसनों से रहो दूर सदा
व्यसन होते हैं बड़े खराब
घर टूटे जाने कितने ही इनसे,
हैं येअफीम,चरस,भांग,शराब
नशा मुक्ति केंद्र जा कर
मुक्ति पाओ इनसे,
बड़ी सुंदर होती है जिंदगी की किताब
व्यर्थ खराब करो ना इसको
लख चौरासी के बाद मानुष जोनी का मिलता खिताब
एक बार छोड़ने की कोशिश तो करो
मावस में पूनम का खिल जाएगा आफताब
कैसी भी हालत हो कैसे भी हों हालात
हमें आशा का आफताब खिलाना है
स्वर्ग से इस जीवन को नहीं नर्क बनाना है
Its high time to know
नशा तो वह घुन और दीमक है,जो हौले हौले ले जाता है हमें गर्त में
नशा तो सिर्फ और सिर्फ बर्बादी का दीवाना है
नशे की दीमक लील लेती है हमारे वर्तमान और भविष्य को
फिर क्यों इस राह पर जाना है???
अच्छे और बुरे में से हम जो भी चुनते हैं परिणाम वैसा ही आना है
एक बात रखना सदा जेहन में
मात्र क्षणिक सुखों के लिए
जिंदगी को नहीं नर्क बनाना है
दूर रहो सदा उस संगति से
जिन्होंने नशे को आधुनिकता का पैमाना माना है
शराब,शबाब और कबाब ग्रहण हैं मानव जीवन पर
भूल से भी नहीं इनको अपनाना है
संग का रंग अवश्य ही चढ़ता है
जाने यह सारा जमाना है
स्वर्ग से इस जीवन को नहीं नर्क बनाना है
जाने कितने ही आशियाने तब्दील हो गए खंडहरों में,
इनका गुणांक नहीं अब और बढ़ाना है
मुख्य को गौण और गौण को मुख्य नहीं बनाना है
संवेदना खो जाती है उस चित से जहां नशों का सेवन होता है
गलत राहों का कर के चयन भला इंसा कहां नींद चैन की सोता है???
भोग विलास नहीं उद्वेश्य मानव जीवन का,उसे अज्ञान की इस कुंभकर्णी नींद से जगाना है
बहुत सो लिए अब तो जाग लो
अपने परायों सब को जागरूक बनाना है
जैसी सोच,वैसे कर्म,वैसे ही होते हैं परिणाम
इस भाव को जन जन के जेहन में लाना है
सौ बात की एक बात है
शिक्षा भाल पर संस्कारों का टीका लगाना है
घर के बड़ों को बच्चों के सामने
हाला का प्याला नहीं छलकाना है
जो देखते हैं वहीं सीखते हैं बच्चे
नशे के जाल में उन्हें नहीं फंसाना है
शुभ काम में देरी कैसी
आज अभी इसी पल से के लो संकल्प
हमें कभी भी नशे के चंगुल में नहीं आना है
यही अर्थ है आज के समारोह का
संकल्प को सिद्धि से मिलाने का अभियान चलाना है
गण तंत्र दोनों की है यह सामूहिक
जिम्मेदारी,
इसे मुझे,तुझे सबको मिल कर निभाना है
स्वर्ग से इस जीवन को नहीं नर्क बनाना है
कविता के माध्यम से बहुत बहुत अच्छी बात बताई है .....
ReplyDeleteक्या उचित शीर्षक रखा है....
स्वर्ग से इस जीवन को नर्क नहीं बनना है
वास्तव में नशा जीवन को नर्क से भी
गंदा बना देता है
नशा आदमी को बनाए अंधा
छुड़ा दे घर बार और धंधा
मनुष्य जीवन को बनाए गंदा
शारीरिक स्थिति में भी व्यक्ति को कर दे मंदा
सच में नशा जीवन में बहुत है गंदा
एक बात रखना सदा जेहन में
मात्र क्षणिक सुखों के लिए
जिंदगी को नहीं नर्क बनाना है
अत्यंत ही सुन्दर बात कही
संग का रंग हमेशा ही चढ़ता है
बात से पूरी कविता को समझा दिया अगर बुरा संग हो तो रावण बनते देर नहीं लगती और सत्कर्मों का संग हो हो राम बनते देर नहीं लगती