उठो पार्थ गांडीव उठाओ
यह बेला समर की आई है
आज दिखाओ रण कौशल
क्यों दुविधा चित में आई है???
मोहग्रस्त हुए पार्थ जब
देख अपनों को
कुरुक्षेत्र में
तब माधव ने बात यही समझाई है
जब जब होती है हानि धर्म की
बेला तब शस्त्र उठाने की आई है
भूल गए क्या अपमान पांचाली का
क्या उस बेला ने मन में उथल पुथल नहीं मचाई है
धर्म की रक्षा के लिए उठाया जाता है जब जब शस्त्र,
समझो घड़ी गौरव की आई है
उठो पार्थ! गांडीव उठाओ
यह समर की बेला आई है
याद करो जब शांति दूत बन
मैं गया था दुर्योधन के द्वारे
सुई की नोक के बराबर भी भूमि नहीं दूंगा बोला था वह चित उसे धिककारे
यह युद्ध तो चयन है कौरव पक्ष का
क्यों बात समझ तुम्हे नहीं आई है
उठो पार्थ गांडीव उठाओ
ये समर की बेला आई है
रावण ने हरण किया सीता का
श्री राम ने उसका किया संहार
नारी अस्मिता की रक्षा हेतु
शत्रु का शमन करना ही था उपचार
दुविधा के हटाओ ये धुंध कुहासे
अन्याय अनीति के बादल छंटने की बेला आई है
उठो पार्थ गांडीव उठाओ
घड़ी सही निर्णय लेने की आई है
गलत का साथ देने वाला भी होता है गलत, भीष्म कर्ण की भूमिका ने
बात यही समझाई है
तेरे संग तो मैं खड़ा हूं बन तेरा सारथी
फिर क्यों बेचैनी ने चित में तुम्हारे ली अंगड़ाई है
वीर रचते हैं इतिहास जगत में
आज कुरुक्षेत्र की इस रण भूमि में वही बेला आई है
उठो पार्थ गांडीव उठाओ
वक्त की मांग ने बजाई अपनी शहनाई है
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