लय ताल प्रेम प्रीत है माँ,
सुर,सरगम गीत, संगीत है माँ।
इस जग की निष्ठुर भीड़ में,
सबसे सच्चा मीत है माँ।।
खिले चमन का पुष्प है माँ,
महफ़िल की रौनक है माँ,
सहजता का पर्याय है माँ,
सबसे सुंदर राय है माँ।।
शिक्षा है माँ,संस्कार है माँ,
साज है माँ श्रृंगार है माँ,
आस है माँ विश्वास है माँ,
जीवन मे सबसे खास है माँ,
बेटी की माँ बनने से,
माँ की बेटी बनना है आसान।
एक अक्षर के छोटे से शब्द में,
सिमटा हुआ है पूरा जहान।।
न कोई था,न कोई है,न कोई होगा,
माँ से बढ़ कर कभी महान।।
इंद्रधनुष है माँ,रंगोली है माँ,
दीवाली है माँ,होली है माँ,
चेतना है माँ स्पंदन है माँ
पूजा है माँ वंदन है माँ,
नहीं बना कोई इंचीटेप जो नाप ले,
जो माँ के मन की गहराई।
वो सागर से भी गहरी है,
थाह उसकी आज तलक न पाई।।
कर्म है माँ धर्म है माँ,
मीठी है माँ,नरम है माँ,
तन है माँ रूह है माँ,
धरा है माँ गगन है माँ,
पुष्प है माँ चमन है माँ,
ज़रूरत है माँ हसरत है माँ,
नयन हैं माँ, सपने हैं माँ,
इंसा के लिए तो कुदरत है माँ,
माँ के लिए तो उसके बच्चे ही हैं उसका संसार।
पर बच्चों के संसार मे कहीं खो सी जाती है वो,
सिमट से जाते हैं धीरे धीरे उसके अधिकार।।
फिर भी उसकी दुआओं का कभी खाली नही होता पिटारा।
माँ जीवन के हर मोड़ पर होती है सबसे बड़ा सहारा।।
हमे हमारे गुण दोषों के संग हमे
केवल अपनाती है माँ।
जीवन के इस दलदल में,
जलजात सी खिल जाती है माँ।।
सब साथ छोड़ दें बेशक,
पर सदा ही संग खड़ी नज़र आती है माँ।
कर्कश सी इस दुनिया मे,
मीठी लोरी सुनाती माँ।।
नहीं भावों में इतनी शक्ति,
जो माँ की ममता का कर सकें बखान।
शब्द भी हो जाते हैं शर्मिंदा,
किस शब्दावली से कैसे मां का गाएँ गुणगान??
ह्रास नहीं विकास है माँ,
सबसे मीठा आभास है माँ,
माँ कभी भी कहीं नहीं जाती,
बता देते हैं हमारे आचार विचार,
कार्यशैली और व्यवहार।।
हमारे जन्म से अपनी मृत्यु तक,
जो दिल मे हमें बसाती है।
कोई और नही वो प्यारे बन्धु,
सिर्फ और सिर्फ मां कहलाती है।
माँ के जाने के बाद ही माँ की,
कीमत समझ मे आती है।।
कई मर्तबा न वो कुछ कहती है,
न हम ही आगे बढ़ कर आगे आते हैं,
माँ की दिल की,दिल मे ही रह जाती है।।
जाने कहाँ से इतनी ममता,इतना धैर्य,
अपने आँचल में समाती है।
यूँ ही तो नहीं वो ईश्वर की सर्वोत्तम
कृति कहलाती है।
जीवन के इस अग्निपथ पर,
वो ठंडी छाया बन जाती है।
जीवन की इस भूलभुलैया में,
हमे राह सही दिखलाती है।।
हमारे ख्वाबों की खातिर,
ज़रूरतें अपनी बलि चढ़ाती है।।
बदले में बस दो मीठे बोल और थोड़ा समय
ही तो हमसे वो चाहती है।
मुझे तो माँ ईश्वर का पर्याय ही नज़र आती है।।
कर्म को उत्सव बनाने वाली,
ज़िन्दगी जीना सिखाने वाली,
हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध कराने वाली, ज़िन्दगी का परिचय अनुभूतियों से कराने वाली, हर कब,क्यों,क्या, कैसे,कितना का उत्तर बनने वाली,
बेशक एक दिन तन से तो इस जग से,
चली जाती है।
पर मन से आजीवन हमारी आत्मा में,
बहुत ही गहरे बस जाती है।।
यही कारण है शायद,उम्र कोई भी हो,
भाव कैसा भी हो,माँ ही माँ याद आती है।।
स्नेहप्रेमचन्द
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