Skip to main content

माँ ही तो मीत है thought by snehpremchand

लय ताल प्रेम प्रीत है माँ,
 सुर,सरगम गीत, संगीत है माँ।
इस जग की निष्ठुर भीड़ में,
सबसे सच्चा मीत है माँ।।
खिले चमन का पुष्प है माँ,
महफ़िल की रौनक है माँ,
सहजता का पर्याय है माँ,
सबसे सुंदर राय है माँ।।
शिक्षा है माँ,संस्कार है माँ,
साज है माँ श्रृंगार है माँ,
आस है माँ विश्वास है माँ,
जीवन मे सबसे खास है माँ,
बेटी की माँ बनने से,
 माँ की बेटी बनना है आसान।
एक अक्षर के छोटे से शब्द में,
 सिमटा हुआ है पूरा जहान।।
न कोई था,न कोई है,न कोई होगा,
माँ से बढ़ कर कभी महान।।
इंद्रधनुष है माँ,रंगोली है माँ,
दीवाली है माँ,होली है माँ,
चेतना है माँ स्पंदन है माँ
पूजा है माँ वंदन है माँ,
नहीं बना कोई इंचीटेप जो नाप ले,
जो माँ के मन की गहराई।
वो सागर से भी गहरी है,
थाह उसकी आज तलक न पाई।।
कर्म है माँ धर्म है माँ,
मीठी है माँ,नरम है माँ,
तन है माँ रूह है माँ,
धरा है माँ गगन है माँ,
पुष्प है माँ चमन है माँ,
ज़रूरत है माँ हसरत है माँ,
नयन हैं माँ, सपने हैं माँ,
इंसा के लिए तो कुदरत है माँ,
माँ के लिए तो उसके बच्चे ही हैं उसका संसार।
पर बच्चों के संसार मे कहीं खो सी जाती है वो,
सिमट से जाते हैं धीरे धीरे उसके अधिकार।।
फिर भी उसकी दुआओं का कभी खाली नही होता पिटारा।
माँ जीवन के हर मोड़ पर होती है सबसे बड़ा सहारा।।
हमे हमारे गुण दोषों के संग हमे
 केवल अपनाती है माँ।
जीवन के इस दलदल में,
 जलजात सी खिल जाती है माँ।।
सब साथ छोड़ दें बेशक,
 पर सदा ही संग खड़ी नज़र आती है माँ।
कर्कश सी इस दुनिया मे,
मीठी लोरी सुनाती माँ।।
नहीं भावों में इतनी शक्ति,
 जो माँ की ममता का कर सकें बखान।
शब्द भी हो जाते हैं शर्मिंदा,
किस शब्दावली से कैसे मां का गाएँ गुणगान??
 ह्रास नहीं विकास है माँ,
सबसे मीठा आभास है माँ,
माँ कभी भी कहीं नहीं जाती,
बता देते हैं हमारे आचार विचार,
 कार्यशैली और व्यवहार।।
हमारे जन्म से अपनी मृत्यु तक,
 जो दिल मे हमें बसाती है।
कोई और नही वो प्यारे बन्धु,
सिर्फ और सिर्फ मां कहलाती है।
माँ के जाने के बाद ही माँ की,
कीमत समझ मे आती है।।
कई मर्तबा न वो कुछ कहती है,
न हम ही आगे बढ़ कर आगे आते हैं,
माँ की दिल की,दिल मे ही रह जाती है।।
जाने कहाँ से इतनी ममता,इतना धैर्य,
 अपने आँचल में समाती है।
यूँ ही तो नहीं वो ईश्वर की सर्वोत्तम
 कृति कहलाती है।
जीवन के इस अग्निपथ पर,
 वो ठंडी छाया बन जाती है।
जीवन की इस भूलभुलैया में,
 हमे राह सही दिखलाती है।।
हमारे ख्वाबों की खातिर,
 ज़रूरतें अपनी बलि चढ़ाती है।।
बदले में बस दो मीठे बोल और थोड़ा समय
ही तो हमसे वो चाहती है।
मुझे तो माँ ईश्वर का पर्याय ही नज़र आती है।।
कर्म को उत्सव बनाने वाली,
ज़िन्दगी जीना सिखाने वाली,
हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध कराने वाली, ज़िन्दगी का परिचय अनुभूतियों से कराने वाली,  हर कब,क्यों,क्या, कैसे,कितना का उत्तर बनने  वाली,
 बेशक एक दिन तन से तो इस जग से,
 चली जाती है।
पर मन से आजीवन हमारी आत्मा में,
बहुत ही गहरे बस जाती है।।
यही कारण है शायद,उम्र कोई भी हो,
भाव कैसा भी हो,माँ ही माँ याद आती है।।
               स्नेहप्रेमचन्द

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

अकाल मृत्यु हरनम सर्व व्याधि विनाश नम Thought on धनतेरस by Sneh premchand

"अकाल मृत्यु हरणम सर्व व्याधि विनाशनम" अकाल मृत्यु न हो, सब रोग मिटें, इसी भाव से ओतप्रोत है धनतेरस का पावन त्यौहार। आज धनतेरस है,धन्वंतरि त्रयोदशी, धन्वंतरि जयंती, करे आरोग्य मानवता का श्रृंगार।। आज ही के दिन सागर मंथन से प्रकट हुए थे धन्वंतरि भगवान। आयुर्वेद के जनक हैं जो,कम हैं, करें, जितने भी गुणगान।। प्राचीन और पौराणिक डॉक्टर्स दिवस है आज, धनतेरस के महत्व को नहीं सकता कोई भी नकार। "अकाल मृत्यु हरनम, सर्व व्याधि विनाशनम" इसी भाव से ओत प्रोत है धनतेरस का पावन त्यौहार।। करे दीपदान जो आज के दिन,नहीं होती अकाल मृत्यु,होती दूर हर व्याधि रोग और हर बीमारी के आसार।। आज धनतेरस है,धन्वंतरि त्रयोदशी,धन्वंतरि जयंती,करे आरोग्य मानवता का श्रृंगार।।।             स्नेह प्रेमचंद