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तन्हाई जब करती है कोलाहल,((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

तन्हाई जब करती है कोलाहल,
तब माँ याद आ जाती है।
आती हैं जब गर्मी की छुटियाँ,
तब माँ याद आ जाती है।

ढलती है जब साँझ सुनहरी,
तब माँ याद आ जाती है।
कौन सी ऐसी शाम है,
जब माँ याद नही आती है।

नही मिलता जब प्यार माँ सा कहीं,तब माँ याद आ जाती है।
दुखा देता है जब कोई दिल,
तब माँ याद आ जाती है।

खोलती हूँ जब पट अलमारी के,
तब माँ याद आ जाती है।
माँ बाप ही एक ऐसा रिश्ता है जो किसी शर्त पर प्यार नही करता, हम उन्हें दुःख भी देते है, तो भी प्रेम करते है।।

उनके जैसा कोई पुर्सान ए हाल,उनके जैसा कोई गम गुसार हो ही नहीं सकता।।
हमे हमसे ज्यादा जानते हैं,हमारे सुनहरे मुस्तकबिल के लिए अपने माजी को भी हंसते हंसते कुर्बान कर देते हैं।।
जिंदगी का परिचय अनुभूतियों से कराने वाले मात पिता एक दिन हमे छोड़ चले जाते हैं,उनकी महता का अहसास हमे उस दिन होता है।।
वो आफताब है जिनके अस्त होते ही अंधेरा हमे घेर लेता है।।
        स्नेह प्रेमचंद

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