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साड़ी एक अहसास(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

साड़ी अदा है, साड़ी गौरव है,साड़ी सनातन संस्कृति है, साड़ी मर्यादा है,सौम्यता है,शालीनता है,परिधान है एक अति सुखद और पूर्ण अहसास का।
साड़ी ग्रेस है,साड़ी प्रतिबिंब है भारतीयता की धड़कन और श्वास का।।

ये जो हरी साड़ी पहनी है मैंने,
ये भी तेरा दिया हुआ है उपहार।
बहुत सहेज कर रखा है इसे मैने
इसके स्पर्श में होते हैं तेरे दीदार।।

अति प्राचीनतम पहनावा है साड़ी
हर औरत सुंदर लगती है पहन कर साड़ी।।
गरिमा है साड़ी,सुंदरता है साड़ी,
आकर्षण का दूसरा नाम है साड़ी।
कला है साड़ी,भाव है साड़ी, परंपरा है साड़ी।।
रंगों की सुंदर रंगोली है साड़ी
राजस्थान का बंदेज़,बनारस की सिल्क, तांत,पटोला,चंदेरी, शिफॉन,हर अंदाज में कुछ अलग ही है साड़ी।।
हर राज्य की अलग अलग पहचान है साड़ी
प्राचीनता और आधुनिकता का संगम है साड़ी।।

इतिहास के मंडप में वर्तमान और भविष्य का अनुष्ठान है साड़ी।।सौंदर्य के घाट पर शालीनता का जल है साड़ी।।
उल्लास,पर्व,रीत है साड़ी।।
 गांव,शहर,प्रांत,राज्य,देश और अब तो परदेस में भी सदा छाई रहती है साड़ी।।
पूरब की पहचान है साड़ी।।
इस परिधान की गरिमा से तो अब पश्चिम भी अछूता नहीं।।
सबसे प्यारा उपहार है साड़ी।।
सौ बात की एक ही बात आती है समझ में,सबसे सुंदर परिधान है साड़ी।।
एक मेरी सबसे छोटी मां जाई थी,
कहते थे लोग जिसे अंजु कुमार।
साड़ी में लगती थी देवी सी,
था शौक उसे साड़ी का बेशुमार।।
बोडर वाली लाल काली कॉटन साड़ी का उसने मुझे दिया था उपहार।।
*तुझ पर बहुत अच्छी लगेगी लेले जीजी*कहते हुए तेरी आंखों में था प्यार ही प्यार।।
मेरी अलमारी में मेरी मां की मेरी ही शादी में पहनी हुई एक साड़ी है,
जो मेरे लिए है,जग का सबसे सुंदर परिधान।।
सच में धरा पर मां ईश्वर का होती है वरदान।।

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

अकाल मृत्यु हरनम सर्व व्याधि विनाश नम Thought on धनतेरस by Sneh premchand

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सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व