Skip to main content

वे राम हैं

*अच्छा करने वालों को तो सब लगा लेते हैं गले,पर बुरा करने वालों को भी जो गले लगा ले, वे राम हैं*

*वनवास के बाद अयोध्या लौटने के बाद सबसे पहले मिले माता केकैई से,प्रसंग ये इसी बात का प्रणाम है*

*आस्था सब में है पर ईश्वर सबको नहीं आते हैं नजर,
आए नजर शबरी को राम
उसके इंतजार में थी इतनी श्रद्धा,
कुटिया में स्वयं ही पहुंच गए थे राम*

भगत का झूठा भी जो बड़े प्रेम से खा जाते हैं,वे राम हैं

राजतिलक की हो रही थी तैयारी,
अचानक ही पता चला,नहीं होगा राज्यभिषेक,करना होगा वंगामन,
राजा बनेगा भाई भरत,सब जान कर भी जो मुस्कुरा कर हो जाते हैं बिन माथे पर शिकन लाए,
 *वे राम हैं*

*रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन न जाए*
इसे पूर्णतया अपना ले जो बिन किसी सवाल जवाब के, वे राम हैं

पर नारी की ओर जो नजर भी ना उठाए, शरूपन खा के लाख रिझाने पर भी जो वश में ना आए, वे राम हैं

गुरु की हर आज्ञा का जो करे सदा पालन, *वे राम हैं*

क्या होती है मित्रता,जो जग को सिखलाए वे राम हैं

करो स्मरण गर हनुमान को,और पूजा जिसकी हो जाए, वे राम हैं

मर्यादा,संयम,शौर्य,धर्म जो जग को सिखाए *वे राम हैं*

रक्त के बंधन से उपर भी होती है भगति जिनकी *वे राम हैं*

रावण का सगा भाई था विभीषण,
पर चित में उनके जो रहते थे
* वे राम हैं*

अंतिम श्वास में शत्रु भी ले नाम जिनका*वे राम हैं*

माया से बड़े होते हैं नाते,
जो पूरे विश्व को समझा गए
 *वे राम हैं*

लंका पर विजय पाकर विभीषण को सौंप दी लंका जिसने
*वे राम हैं*

शत्रु से भी ज्ञान ग्रहण करने की शिक्षा दी जिसने भाई लक्ष्मण को *वे राम हैं*
 
नारी अस्मिता की रक्षा हेतु जो शस्त्र0उठा ले*वे राम हैं*

राम से मर्यादा पुरषोत्तम राम बनने की इतनी सरल नहीं है कहानी
संघर्ष,त्याग,संयम,चुनौतियां  सब श्री राम को पड़ी उठानी

एक बात आती है समझ
रामायण नहीं कहानी मात्र सात कांड की,
यह कहानी है सच में पूरे ब्रह्मांड की

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

अकाल मृत्यु हरनम सर्व व्याधि विनाश नम Thought on धनतेरस by Sneh premchand

"अकाल मृत्यु हरणम सर्व व्याधि विनाशनम" अकाल मृत्यु न हो, सब रोग मिटें, इसी भाव से ओतप्रोत है धनतेरस का पावन त्यौहार। आज धनतेरस है,धन्वंतरि त्रयोदशी, धन्वंतरि जयंती, करे आरोग्य मानवता का श्रृंगार।। आज ही के दिन सागर मंथन से प्रकट हुए थे धन्वंतरि भगवान। आयुर्वेद के जनक हैं जो,कम हैं, करें, जितने भी गुणगान।। प्राचीन और पौराणिक डॉक्टर्स दिवस है आज, धनतेरस के महत्व को नहीं सकता कोई भी नकार। "अकाल मृत्यु हरनम, सर्व व्याधि विनाशनम" इसी भाव से ओत प्रोत है धनतेरस का पावन त्यौहार।। करे दीपदान जो आज के दिन,नहीं होती अकाल मृत्यु,होती दूर हर व्याधि रोग और हर बीमारी के आसार।। आज धनतेरस है,धन्वंतरि त्रयोदशी,धन्वंतरि जयंती,करे आरोग्य मानवता का श्रृंगार।।।             स्नेह प्रेमचंद

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व