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भाई बहन का प्यारा नाता(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))


शीर्षक *_भाई बहन का सबसे लंबा, सबसे प्यारा नाता* 

भाई बहन के नाते की बस एक बात मुझे जरूर समझ में आती है जब साथ खड़े होते हैं दोनों, मावस भी पूनम बन जाती है जब जरूरत हो तो आ जाते हैं आगे बढ़ कर ऐसे जैसे कोई चांद बदली से निकल कर एकदम बाहर आता है जरूरत ना हो तो छिप जाते हैं मावस के चांद से, लफ्जों का नहीं यह दिल का दिल से नाता है इजहार भले ही कम होता हो पर एहसासों में तो यह पल पल गहराता है

जिंदगी का परिचय जब हो रहा होता है अनुभूतियों से जब संज्ञा, सर्वनाम, विशेषणों से वक्त वाकिफ करवाता है तब से चलता है ये नाता अनूठा, एक ही कोख का यह नाता है एक ही परिवेश और एक सी परवरिश पाने वाले भाई बहन भले ही एक मोड पर अलग अलग दुनिया बसा लेते हैं नए रिश्तों के नए भंवर में उलझ कर सुस्ता जाते हैं संवाद उनके पर दिल से ताउम्र दुआ वे देते हैं

सबसे लंबा साथ होता है भाई बहनों का, अक्स मात पिता का एक दूजे में नजर आता है पता है क्यों इतना अच्छा लगता है बचपन क्योंकि भाई बहन का नाता इसमें पल्लवित पुष्पित हो जाता है

किसी और से चश्मे से ना देखें भाई बहन एक दूजे को फिर यह नाता पोषित होता जाता है कभी अचानक आ जाएं एक दूजे के आंगन में जैसे कोई बच्चा अचानक कोई गेंद लेने घर में आ जाता है 
स्नेह प्रेमचंद

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