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प्रेम thought by snehpremchand

प्रेम न जाने जाति मज़हब,
जाने प्रेम न कोई दीवार।
प्रेम न जाने देस परदेस,
प्रेम का बड़ा विहंगम आकार।।

प्रेम है गंगा जल सा निर्मल,
दिनकर का तेज इसका आधार,
इंदु की शीतलता इसमे,
 धरा की सहनशीलता करे साकार।।
प्रेम है सागर से भी गहरा,
भावों को देता आकार।।

प्रेम की जब आती है सुनामी,
बह जाते है सारे विकार।
नही टिक पाता कोई इसके आगे,
ईर्ष्या,क्रोध,लालच,अहंकार।।

स्वार्थ से परमार्थ की बयार है प्रेम
अहम से वयम का शंखनाद है प्रेम
जनकल्याण की अखंड ज्योत है प्रेम
अंतकरण की शुद्धिकरण है प्रेम
सोच का सुधार है प्रेम
मन की वीणा का सबसे सुंदर तार है प्रेम
गीत संगीत उत्सव उल्लास है प्रेम
कान्हा की मुरली,राधा का रास है प्रेम

प्रेम को बेशक कई मर्तबा,
करना नही आता इज़हार।
नयनों से बह जाता है ये,
चाहे बेशक लब करते हों इनकार।।

प्रेम से सब हो जाता है सुंदर,
प्रेम से खुलते हैं करुणा के द्वार।
घृणा जब बदलती है प्रेम में,
स्वर्ग धरा पर ही लेता है ये उतार।।

प्रेम के चूल्हे  में सदा,
विशवास का ईंधन जलता है।
छप्पन भोग से भी मीठा,
साग सौहार्द का पकता है।
करुणा का छिड़का जाता है धनिया,
मसाला सदभाव का डलता है। 

प्रेम है एक मधुर अहसास,
प्रेम से सब हो जाता है खास,
प्रेम अंधेरे में जैसे प्रकाश,
प्रेम है जैसे कुसुम में सुवास,
प्रेम है जैसे नयनों में ज्योति,
प्रेम है जैसे माला में मोती,
प्रेम है रूह का अनमोल खज़ाना,
प्रेम से इंसा बन जाता दीवाना,
प्रेम है जीवन का सच्चा सार,
प्रेम जीत है,नही है हार।।
मीरा ने प्रेम किया कान्हा से,
हुआ विष में अमृत का संचार।
राधा ने प्रेम किया कान्हा से
आज भी जररा ज़ररा है गुलज़ार।
नाम आज भी राधा का लिया जाता है कान्हा से पहले,बिन नाम के नाते का
 प्रेम ही कर रहा श्रृंगार।।
शबरी ने प्रेम किया श्री राम से,
झूठे बेरों में पाया प्रेम का पार।।

प्रेम के मंडप में सदा,
सहजता का अनुष्ठान ही होता है,
प्रेम के नयनों में सूरमा
सदा अपनेपन का ही होता है।।
प्रेम लेने में नही,देने में है होता,
प्रेम सदविचारों के बीज ही बोता है।।

ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ कर,
बदल जाता है पूरा संसार,
और अधिक नही आता कहना,
प्रेम है हर रिश्ते का आधार।।
          स्नेहप्रेमचंद

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