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मेरी नजर में आजादी के मायने(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मेरी नजर में आजादी के मायने मुझे तो यही समझ में आते हैं।
जहां अभिव्यक्ति को सही इजहार मिले,जब मन की बात जुबान पर हम लाते हैं।।

जब मां मातृभूमि और मातृभाषा को समान अधिकार मिले वही आजादी है।

जहां उच्चारण और आचरण में ना हो कोई भी अंतर, जहां कथनी को हम करनी से निभाते हैं।।

जब अधिकार संग हम जिम्मेदारी भी उठाते हैं।।

सामूहिक चेतना का हो रहा है पुनर्जागरण,इस चेतना को जब चेतन और अचेतन दोनों मनों में पाते हैं,सही मायनो में आजाद हम हो जाते हैं।।

जब जनकल्याण से जगकल्याण के हम  राही बन जाते हैं।।

**स्वदेशी**पर हो गर्व हमे और आत्मनिर्भर भारत सब की रगों में दौड़े, आत्मनिर्भर भारत समाज का जन आंदोलन बन जाए,
ऐसे भारत का सपना जब जन जन को हम दिखाते हैं,सही मायनो में आजाद हम हो जाते हैं।।

अनुशासित जीवन,कर्तव्य के प्रति समर्पण और चेतना के पुरजागरण की राह पर जब जाते हैं।।

अनमोल क्षमता वाले इस भारत में जब प्रतिभा को अधिकार दिलाते हैं।।

प्राकृतिक खेती को जब अपना मुख्य ध्येय बनाते हैं।।।।

हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को उच्चारण में नहीं आचरण में कर पाते हैं।।

**हमारी विरासत हमारी प्राण शक्ति है** जब इस भाव की अलख हर चित में हम जलाते हैं।।


जय जवान जय किसान जय विज्ञान और जय अनुसंधान को
अपना लक्ष्य बनाते हैं।।

भष्टचार और भाई भतीजावाद से जब सही मायनों में मुक्ति हम पाते हैं।।

**स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत**की अलख जब जन जन में हम जगाते हैं।।

जब हर प्रतिभा को मिलता है प्रोत्साहन और व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ाते हैं।।

जब अंधविश्वास,कुरीतियों और रूढ़ियों से हम अपना दामन बचाते हैं।।

जब अपने आत्म सम्मान को हम बनाए रखते हैं आजादी हंसती मुस्कुराती इठलाती आ ही जाती है।।

जब भेद भाव की बहे ना कोई धारा,
 जब हम सम भाव और सम दृष्टि अपनाते हैं।।

 जब अहम से वयम और स्वार्थ से परमार्थ की चलने लगती है बयार,
समझो आजादी आ गई।।

 जब हर चित में जीयो और जीने दो के शंखनाद की प्रतिध्वनि गुंजित हो,समझो आजादी आ गई।।

  जब जाति धर्म देश प्रांत से ऊपर सद्भाव,प्रेम,शांति और करुणा हो,आजादी बिन बुलाए ही आ जाती है।।

जब सबल स्वेच्छा से निर्बल का हाथ थाम ले,
जब कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति को भी उसके समस्त अधिकार मिले,
जब शिक्षा और चिकित्सा सबको फ्री
में मुहैया करवा सकें,
जब लिंगभेद, जाति गत भेद,आर्थिक,सामाजिक और धर्मभेद से ऊपर इंसानियत हो जाए,
जब मजहब कमजोरी ना बन कर ताकत बन जाए,
जब सादा जीवन उच्च विचार की गंगोत्री सर्वत्र सर्वदा निर्बाध गति से बहे।।
जब किसी प्रकार का शोषण ना हो,
जब किसी की मजबूरी का फायदा ना उठाया जाए,
जब कोई अपने अधिकारों से महरूम ना रहे,
जब हमारे निर्णय पूर्वाग्रहों से ग्रस्त ना हों,आजादी जिंदगी की चौखट पर बार बार दस्तक देने आ ही जाती है।।

किसी भी दबाव और अनावश्यक प्रभाव से उपजे अवसाद विषाद कुंठा से मुक्त होना भी आजादी है।।

नकारात्मक विचारों मुक्त चित होना भी आजादी है।नैराश्य भाव चिंता का जनक है।किसी भी अवसाद,विषाद,कुंठा से मुक्त होना भी आजादी है।।

जब ज्ञान के द्वार सबके लिए समान रूप से खुलें हों,
जब बचपन किसी मजबूरी का मोहताज ना हो,
जब हर बच्चे के हाथ में  किताब और चित में जिज्ञासा हो आजादी जिंदगी के भाल पर मुस्कुराने लगती है।।

जब शिक्षा के भाल पर संस्कार का टीका लग जाता है आजादी सहज रूप से बिन बुलाए आ जाती है।।
  
मेरी नजर में तो आजादी के यही मायने हैं।।
          स्नेह प्रेमचंद

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