Skip to main content

वो मेरे साथ थी जब तक(( थॉट सुमन प्रेमचंद))

वो मेरे साथ साथ थी जब तक 
ख़ुशबूओं का सफ़र रहा तब तक 

वो चली तो गई मगर 
मुझसे बिछड़ीं कहाँ है वो अब तक 

वो पहली बारिश के बाद माटी की महक सी महकती रही  आज तक
वो महक आज भी वजूद में गहरे तक है समाई

सच किस माटी से बनी थी वो मां जाई???

वो धड़धड़ाती ट्रेन सी कब जिंदगी की पटडियो से ओझल हो गई,
वो थरथराते पुल सा वजूद मेरा खोजी नजरों से आज भी निहार रहा है राहें उसकी अब तक

वो खुद मझधार में हो कर भी सबको साहिल का पता बताती रही
वो जिंदगी से लड़ती रही, कभी थकी नहीं,चलती रही ऐसे  जैसे कोई बच्चा स्कूल जाता हो रोज

वो छोटी सी जिंदगी में कर्म बड़े बड़े करती रही,आज भी चेतना में जैसे किसी शंखनाद की ध्वनि सी गूंजती रहती है,वो जा कर भी नहीं गई,यहीं कहीं  आस पास है तेरे मेरे


I don’t want to know that you are not there in this world in physical form . I want to believe that you are always by side and will always be by my side in every family photograph. I want to smile while looking at your divine smiling face . 
तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी में शामिल है 
जहां भी जाऊँ तो तेरी कमी सी है …

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

अकाल मृत्यु हरनम सर्व व्याधि विनाश नम Thought on धनतेरस by Sneh premchand

"अकाल मृत्यु हरणम सर्व व्याधि विनाशनम" अकाल मृत्यु न हो, सब रोग मिटें, इसी भाव से ओतप्रोत है धनतेरस का पावन त्यौहार। आज धनतेरस है,धन्वंतरि त्रयोदशी, धन्वंतरि जयंती, करे आरोग्य मानवता का श्रृंगार।। आज ही के दिन सागर मंथन से प्रकट हुए थे धन्वंतरि भगवान। आयुर्वेद के जनक हैं जो,कम हैं, करें, जितने भी गुणगान।। प्राचीन और पौराणिक डॉक्टर्स दिवस है आज, धनतेरस के महत्व को नहीं सकता कोई भी नकार। "अकाल मृत्यु हरनम, सर्व व्याधि विनाशनम" इसी भाव से ओत प्रोत है धनतेरस का पावन त्यौहार।। करे दीपदान जो आज के दिन,नहीं होती अकाल मृत्यु,होती दूर हर व्याधि रोग और हर बीमारी के आसार।। आज धनतेरस है,धन्वंतरि त्रयोदशी,धन्वंतरि जयंती,करे आरोग्य मानवता का श्रृंगार।।।             स्नेह प्रेमचंद