Skip to main content

मैंने भगवान को तो नहीं देखा special poem on women's day by snehpremchand

मैंने भगवान को तो नही देखा,
पर धरा पर मां है ईश्वर का ही अवतार।
माँ जीवन का अनमोल खज़ाना,
माँ से ही सुंदर ये विहंगम संसार।।
क्या क्या उपमाओं से अलंकृत करूँ मैं माँ को,
माँ जीवन का सबसे सुंदर श्रृंगार।।
ज़िन्दगी की पाठशाला की पहली शिक्षिका,
निभाया तूने गज़ब हर किरदार।।
मैंने भगवान को तो नही देखा,
पर धरा पर मां ईश्वर का ही अवतार।
माँ वो किताब है जीवन की,
जिसके हर अल्फ़ाज़ में बस प्यार ही प्यार।।
कोई चिंता नही रहती उसके रहते,
माँ करती सब सपने साकार।
न कोई था,न कोई है,न कोई होगा,
माँ से बेहतर और नायाब सा शिल्पकार।।
हमारे पंखों को परवाज़ देने वाली मां,
निभाती जाने कितने ही किरदार।
ज़िन्दगी के कैनवास में रंग भरने वाली,
माँ सबसे प्यारी सी चित्रकार।।
मुँह सा भर जाता है माँ के सम्बोधन से,
माँ दूर कर देती मन के समस्त विकार।
हर संज्ञा, सर्वनाम,विशेषण का बोध कराने वाली
की हो सर्वत्र सर्वदा जयजयकार।।
ज़िन्दगी की तपिश में हर थकान उतर जाए,
जो जग में एक बस माँ का आँचल मिल जाए।।
क्या क्या कहूँ माँ तुझ को,माँ तो वो कमल है
जो हर कीचड़ में भी खिल जाए।।
माँ के लिए उपमाओं का सच मे कोई अंत नहीँ
ज़्यादा तो मुझे पता नहीं, पर माँ जैसा कोई संत नहीं।।
माँ है बस प्रेम और सम्मान की।पूरी हकदार।
भगवान को तो मैंने देखा नहीं, पर धरा पर
है माँ ईश्वर का ही अवतार।।
थोड़ा ध्यान से सोचो,जग में बस माँ ही तो
होती है ऐसी,जो रूठे को झट मना लेती है।
कितना भी रुलाएँ कितना भी सताएं,
वो सिर्फ और सिर्फ दुआ ही देती है।।
माँ प्रतिबिम्ब हमारे व्यक्तित्व का इतना अदभुत
सच मे माँ जीवन का आधार।
गीत, प्रीत, रीत,रिवाज़, पर्व, उत्सव, उल्लास है माँ
है माँ ही जीवन मे शिक्षा और संस्कार।।
कह दिया,मां रूप में मैंने देखा है भगवान को
ये सत्य करती हूं स्वीकार।।
हमारे संसार मे भले ही वो कहीं खो सी जाए,
पर उसके लिए तो हम ही हैं उसका पूरा संसार।।
          स्नेहप्रेमचंद










Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

अकाल मृत्यु हरनम सर्व व्याधि विनाश नम Thought on धनतेरस by Sneh premchand

"अकाल मृत्यु हरणम सर्व व्याधि विनाशनम" अकाल मृत्यु न हो, सब रोग मिटें, इसी भाव से ओतप्रोत है धनतेरस का पावन त्यौहार। आज धनतेरस है,धन्वंतरि त्रयोदशी, धन्वंतरि जयंती, करे आरोग्य मानवता का श्रृंगार।। आज ही के दिन सागर मंथन से प्रकट हुए थे धन्वंतरि भगवान। आयुर्वेद के जनक हैं जो,कम हैं, करें, जितने भी गुणगान।। प्राचीन और पौराणिक डॉक्टर्स दिवस है आज, धनतेरस के महत्व को नहीं सकता कोई भी नकार। "अकाल मृत्यु हरनम, सर्व व्याधि विनाशनम" इसी भाव से ओत प्रोत है धनतेरस का पावन त्यौहार।। करे दीपदान जो आज के दिन,नहीं होती अकाल मृत्यु,होती दूर हर व्याधि रोग और हर बीमारी के आसार।। आज धनतेरस है,धन्वंतरि त्रयोदशी,धन्वंतरि जयंती,करे आरोग्य मानवता का श्रृंगार।।।             स्नेह प्रेमचंद