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हो सारथी गर कृष्ण सा poem by sneh premchand

सारथी हो गर कृष्ण सा
सुनिश्चित है विजय,नहीं होगी हार।
एक अद्भुत सी कशिश लिए हुए है,
कान्हा का मोहक किरदार।।

कभी ग्वाला,कभी वो रक्षक,कभी सारथी,कभी द्वारकाधीश का श्रृंगार।
मार्गदर्शक हो गर कृष्ण का,
हो जाती है कठिन राह भी गुलज़ार।।
सारथी=============नहीं होगी हार।।

कभी बने सहायक पंचाली के,
किया चीर बढ़ा,समर्पण स्वीकार।

कभी मित्र सुदामा के बने बड़े प्रेम से,
किया मन से मित्र का स्वागत सत्कार।
ऊंच नीच का भेद नहीं कोई
जाति वर्ग मजहब नहीं बना आधार।।
सारथी==============नहीं होगी हार।।

कभी खाई भाजी विदुर के घर मे,
जग से हटाया पापाचार।
पूतना और कंस से मुक्त किया जग को,
 अपनाया सदा ही सदाचार।।
सारथी हो गर कृष्ण सा,
सुनिश्चित है जीत,नहीं होगी हार।।


कभी दिया ज्ञान गीता का अर्जुन को,
समझाया समस्त विश्व को कर्म का सार।
मोह पर्दा हटाया पार्थ का,
चिंतन के उसके किया विस्तार।।

कभी शांति दूत बने पांडवों के,
दिया संदेश था पूरे विश्व को,
होती नही कभी भी धर्म की हार।

साधुओं की रक्षा के लिए,
धर्म स्थापना के लिए,
नारी की रक्षा के लिए,
पाप के अंत के लिए,
ज्ञान विस्तार के लिए,
कान्हा ही तो थे सदाबहार।
सारथी हो गर कृष्ण सा,
सुनिश्चित है जीत,नहीं होगी हार।।

राधा कान्हा के प्रेम का 
आज भी, ज़र्रे ज़र्रे में कर लो दीदार।
नाम आज भी लिया जाता है राधा का
कान्हा से पहले,
शायद इसे है कहते हैं प्यार।।
सारथी हो गर कृष्ण सा
सुनिश्चित है जीत,नहीं होगी हार।।
               स्नेह प्रेमचंद

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