आई तीज बो गई बीज,
आई होली भर ले गई झोली
आती है यादें अतीत की बहुत
आती है याद वो मां की मीठी बोली
आज भी जेहन में छाई हुई हैं
माँ की वे गहरी गहरी बातें,
वो मां का कर्मों में आनंद लेना
हर त्योहार में छिपी सौगातें।
नीम के पेड़ पे झूला पड़ा,
तेज़ पींगो से मन बहला।
खुशहाली गूँजें आँगन में,
पड़ोसिनें भी आ जाएँ आनन-फानन में।
माँ के हाथों की सुहाली, पापड़ की खुशबू,
सजता था घर जैसे कोई पर्व हो रू-ब-रू।
थाली में स्वाद, मन में उमंग,
हर दिन जैसे कोई नया रंग।
न धन था बहुत, न वैभव भारी,
फिर भी ना थी कोई कमी हमारी।
स्नेह था, अपनापन था,
हर दिल में तीज सा बचपन था।
अब जब आई फिर से तीज की बारी,
याद आई वो नीम की डारी।
माँ की बातें, त्योहारों की रीत,
मन में बस गईं बनकर प्रीत।
सहेज ली हैं वो सब यादें,
आज की भागती दुनिया में जैसे कुछ प्यादे।
हर तीज पे फिर वो पल बुलाएँ,
बचपन की गलियों में झूला झुलाएँ
– समर्पित माँ को, तीज की उन मिठास भरी स्मृतियों को
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